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शूल को त्रिशूल
एक गरीब ब्राह्मण अपने दुर्दिनों से बहुत दुःखी था । 'वामन को धन केवल भिच्छा' लोकोक्ति के अनुसार भिक्षा ही उसका धन था । नित्य भिक्षा में जो कुछ मिलताब्राह्मण और ब्राह्मणी उसी से गुजर करते । ब्राह्मण गरीब तो था ही, विद्याहीन भी था। लेकिन अपढ़ होते हुए भी वह विनम्र, उदार और सरल हृदय था । एक दिन उसकी ब्राह्मणी ने परामर्श दिया
"तुम नित्य राजदरबार में जाया करो | किसी-नकिसी दिन राजा की कृपा हो गई तो निहाल कर देगा ।"
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ब्राह्मण नित्य राजदरबार में जाता । दरबार की समाप्ति तक बैठा रहता और चलते समय कहता'धर्म की जय, पाप का क्षय' 'भले का भला, बुरे का बुरा ।'
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राजा नित्य ही उस ब्राह्मण को देखता । एक दिन उसने पूछा
"विप्र ! तुम कहाँ रहते हो ?"
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