SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ शूल को त्रिशूल एक गरीब ब्राह्मण अपने दुर्दिनों से बहुत दुःखी था । 'वामन को धन केवल भिच्छा' लोकोक्ति के अनुसार भिक्षा ही उसका धन था । नित्य भिक्षा में जो कुछ मिलताब्राह्मण और ब्राह्मणी उसी से गुजर करते । ब्राह्मण गरीब तो था ही, विद्याहीन भी था। लेकिन अपढ़ होते हुए भी वह विनम्र, उदार और सरल हृदय था । एक दिन उसकी ब्राह्मणी ने परामर्श दिया "तुम नित्य राजदरबार में जाया करो | किसी-नकिसी दिन राजा की कृपा हो गई तो निहाल कर देगा ।" -- ब्राह्मण नित्य राजदरबार में जाता । दरबार की समाप्ति तक बैठा रहता और चलते समय कहता'धर्म की जय, पाप का क्षय' 'भले का भला, बुरे का बुरा ।' Jain Education International राजा नित्य ही उस ब्राह्मण को देखता । एक दिन उसने पूछा "विप्र ! तुम कहाँ रहते हो ?" For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy