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________________ ४ | सोना और सुगन्ध नमस्कार कर कहा --- हाँ महाराज ! भावदेव मुनि - इस ग्राम में रेवती गाथापत्नी नाम की एक श्राविका रहती थी, क्या तुम उसे जानती हो ? श्राविका - उस धर्म-परायणा श्राविका को कौन नहीं जानता, वह तो इस गाँव में प्रथम नम्बर की श्राविका थी, पर उसे शान्त हुए कई वर्ष हो गये हैं ? भावदेव ने सोचा-अच्छा हुआ एक झंझट तो कम हो गई अब मेरे अभीप्सित मार्ग में कोई भी बाधक तत्त्व नहीं रहा है। उसने दूसरा प्रश्न पुनः किया- 'उसकी पुत्रवधू नागला को भी तू जानती है ? वह इस समय कहाँ पर है ?' बहिन ने मुनि के चेहरे को देखा और पहचान गई कि यह तो मेरे पति भावदेव हैं । एकाकी क्यों आये हैं ? क्यों पूछ रहे हैं ? क्या कहीं दाल में काला तो नहीं है ? ! उसने अपने आपको प्रकट न कर कहा - महाराज वह मेरी सहेली है, मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ, वह अपनी सासु की भाँति ही दृढ़धर्मा श्राविका है । अपने व्रतनियमों का अच्छी तरह से पालन करती है। उसने विवाह करते ही अपने पति को त्याग मार्ग की ओर प्रेरित किया, वह आजन्म ब्रह्मचारिणी है। पर मुनिप्रवर! आप महिलाओं के सम्बन्ध में इतने प्रश्न क्यों कर रहे हैं ? आपको महिलाओं के सम्बन्ध में इस प्रकार छानबीन करना शोभा नहीं देता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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