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११६ / सोना और सुगन्ध ___"क्या बार-बार गहने मांगते हो? एक बार दे तो दिये । धनी होने का यह मतलब तो नहीं कि गरीबों को सताओ।"
धनी व्यक्ति देखता रह गया। फिर शान्त स्वर में बोला___ "भाई ! सपने में तुमने शायद गहने दिये होंगे, पर प्रत्यक्ष में तो कभी नहीं दिये। यदि सीधी राह से नहीं दोगे तो मैं पंचों से न्याय माँगूगा।" ईर्ष्यालु और बिगड़ गया। तड़पकर बोला
"एक बार नहीं, सौ बार पंचायत करा लो। पंचायत से कौन डरता है ? आज जनता तुम्हारे पक्ष में है तो तुम यह समझते हो कि सच्चे को झूठा साबित कर दोगे। जनता तुम्हारी है तो हम गरीबों का भी भगवान है।"
इस वार्तालाप के बाद ईर्ष्यालु व्यक्ति ने नगर की जनता में धनी सेठ को झूठा, बेईमान सिद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। जो भी सुनता यही कहता
"सेठजी तो ऐसे नहीं हो सकते । वे तो वहुत धर्मात्मा और दयालु हैं । वे कभी भी दो बार गहने नहीं माँगेंगे।"
इस पर यह ईर्ष्यालु टिप्पणी करता
"तुम क्या जानो, ? जिस पर बीतती है, वही जानता है। अपने को धर्मात्मा सिद्ध करने के लिए उसने कभी
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