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उपसंहार
पन्द्रह वर्ष बीत गए। ____ अपने पुत्र को राज्यभार सौंप महाबल और मलयासुन्दरी दोनों प्रव्रजित होकर सर्वत्याग के मार्ग पर अग्रसर हो गए।
महाबल मुनि-अवस्था में विचरण कर रहे थे। एक बार वे पृथ्वीस्थानपुर के सीमान्त पर आए और कायोत्सर्ग कर ध्यानस्थ हो गए। उस समय चारों
ओर ठोकरें खाती हुई कनकावती उसी गांव में जा निकली और उसने मुनिवेश में महाबल को पहचान लिया । प्रतिशोध की आग भभक उठी। आसपास में कोई नहीं था। कनकावती ने लकड़ियां इकट्ठी की, उन्हें महाबल मुनि के चारों ओर चिना और उनमें आग लगा दी।
भयंकर कर्मों का अर्जन कर अट्टहास करती हुई कनकावती आगे चली गई। किन्तु मुनि महाबल इस उपसर्ग को समभाव से सहते रहे और आत्ममंथन में लीन हो गए।
महाबल महामुनि केवली हो गए और वहीं सिद्ध हो गए। महासाध्वी मलयासुन्दरी भी उत्तम चरित्र का पालन कर, मृत्यु का वरण कर, देवलोक में उत्पन्न हुईं।
दोनों के भवबंधन सदा-सदा के लिए टूट गए।
३१२ महाबल मलयासुन्दरी
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