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जाए तो मैं उसे दूध पिलाने के पश्चात् दूध पीऊंगा । इस भावना को लिये वह एक तालाब के पास स्थित एक वृक्ष के नीचे आ बैठा । और उसी समय मासक्षपण की तपस्या का पारणा लेने के लिए गांव की ओर जाते हुए एक मुनि उधर आ निकले। मदन ने मुनि को दूध का दान दिया। मुनि आवश्यकतानुसार दूध ले, पारणा कर अपने स्थान की ओर चले गए। मदन भी शेष दूध पीकर मुंह साफ करने तालाब पर गया । वह फिसला और तालाब में जा गिरा। वह तत्काल मर गया । मरकर वह इसी नगरी के राजा के वहां पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम रखा गया कंदर्पदेव !
पृथ्वीस्थानपुर में प्रीतिमती और प्रियमित्र-दोनों एक-दूसरे में अत्यन्त आसक्त थे। एक बार वे धनंजय यक्ष के मंदिर में दर्शनार्थ गए। मार्ग में एक तपस्वी मुनि मिले । प्रियमती ने इसे अपशकुन माना । उसने मुनि को पत्थरों से मारा और रजोहरण छीन लिया। मुनि क्षमासागर थे । वे कायोत्सर्ग कर खड़े रह गए। प्रीतिमती ने मुनि को दागने के लिए एक नौकर से कहा । नौकर ने आज्ञा नहीं मानी। इससे कुपित होकर प्रियमित्र ने उसे एक वृक्ष से बांधकर औंधे मुंह लटका दिया । फिर दोनों यक्षमंदिर में जा, यक्ष के दर्शन कर अपने घर आए और सुखोपभोग में दिन बिताने लगे। प्रियमित्र की दोनों उपेक्षित पत्नियां, रुद्रा और भद्रा, अत्यन्त विषादग्रस्त हो गई थीं। दोनों के मन में पति तथा प्रीतिमती के प्रति प्रचंड रोष पैदा हो गया । एक दिन दोनों ने आत्महत्या कर ली। भद्रा मरकर व्यंतरी बनी। रुद्रा मरकर गजपुर के राजा चन्द्रयशा के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई । उसका नाम कनकावती रखा गया और वह महाराजा वीरधवल की पत्नी हुई।
महाबल और मलया को दुःख देने के लिए ही व्यंतरी ने हार उठाया था और महाबल को भी उठाया था ''क्योंकि महाबल ही प्रियमित्र का जीव था और प्रीतिमती का जीव थी मलयासुन्दरी । दोनों के मध्य मोहजनित भवबंधन बंधे होने के कारण इस जन्म में भी पति-पत्नी हुए।'
__ महाबल की ओर दृष्टिपात कर केवली भगवान् ने कहा--'महाबल ! रानी कनकावती तेरे प्रति मुग्ध बनी थी और मलया की शत्रु बनी थी। पूर्वजन्म के वैरभाव का वह पोषण कर रही थी और तूने जिस सेवक को वटवृक्ष पर औंधे मुंह बांधा था, वह मरकर भूत बना और उसी ने तुझे वटवृक्ष पर औंधे मुंह लटकाया था। रुद्रा ने एक बार तेरी मुद्रिका चुरा ली थी और उसे इस सेवक ने देख लिया था। दोनों के बीच बहुत विवाद हुआ । उसका बदला लेने के लिए इस सेवक भूत ने लोभसार के शव में प्रवेश कर कनकावती की नाक काट ली थी।' ___'भद्रे ! तेरे पर विपत्तियां आयीं, उनका मूल कारण मुनि के प्रति हंसी का आना ही है । तूने उस समय रूप, यौवन और समृद्धि के नशे में अत्यन्त भारी ३१० महाबल मलयासुन्दरी
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