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५६. विनाश का षड्यंत्र
१. चिता की राख
प्रात:काल हुआ । पूर्वांचल पर मरीचिमाली उदित हुआ। सारा नगर व्यस्त हो गया। महाबल स्नान, मंत्र जाप आदि से निवृत्त होकर नगरसेठ के साथ राजा के पास आया। उसने सोचा, मुझे राजा का एक कार्य संपन्न करना है। मैंने वचन दिया है और उसका मुझे अक्षरक्षः पालन करना है। राजा का कार्य शीघ्रता से संपन्न कर मैं मलया को लेकर अपने नगर पृथ्वीस्थानपुर की ओर चला जाऊंगा। माता-पिता मेरे विरह में अत्यन्त दुःखी होंगे।
महाराजा ने कहा-'सिद्धेश्वर ! अपना कार्य पूरा होते ही मैं मलया को लौटा दूंगा । तब तक वह मेरे राजभवन में ही रहेगी। मेरा कार्य बहुत कठिन नहीं है । मैं मस्तकशूल व्याधि से ग्रस्त हूं। यदा-कदा मैं उससे अत्यन्त पीड़ित हो जाता हूं। एक योगी ने मुझे इस व्याधि के निराकरण का उपाय बताया था। परंतु अभी तक मैं उस उपाय को क्रियान्वित नहीं कर सका । वह उपाय यह है-बत्तीस लक्षणों से युक्त एक व्यक्ति हंसते-हंसते चिता में जलकर राख हो जाए और उसकी राख सिर पर लगाई जाए तो शिर-शूल मिट सकता है । यह कार्य तुझे करना है । यह कार्य होते ही तू मलया को लेकर कहीं भी जा सकता है।'
यह सुनते ही महाबल अवाक् बन गया। दूसरे ही क्षण नवकार मंत्र का स्मरण कर वह बोला-'महाराज ! यह कार्य दुष्कर नहीं है। मैं इसे संपन्न कर दूंगा। एक बात है कि मैं जहां कहूं, वहीं चिता तैयार करनी होगी। चिता की तैयारी भी मैं ही करूंगा।'
राजा ने कहा---'सिद्धेश्वर ! जैसा तुम कहोगे वैसा ही होगा।' श्मशानभूमि ।
राजा, मंत्री तथा नगर के हजारों व्यक्ति श्मशान की ओर चले। वहां भीड़ एकत्रित हो गई।
महाबलने चिता के लिए एक स्थान चुना। उसने स्वयं चिता की तैयारी की। २९६ महाबल मलयासुन्दरी
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