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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीवअवधि एक समयेसे उपजणा बी विणसना बी अने दोनो वात पिण हुइ है. दावानलने दृष्टांते करी जिम दवानल एक पासे बूझे अने दूजे पासे वधे तिम कितनाक अवधिज्ञान एक पासे नवा उपजे अने दूजे पासे आगला अवधि विणसे, इस वास्ते एक समयमे कदे दो वात पिण होय है. तथा कितनाक अवधिज्ञान जीवके शरीरके थकी सर्व पासे प्रकाश करे ते शरीर विचाले फाडा कुछ बी नही होय ते 'अभ्यंतर' अवधि कहीये. जिम दीवानी कांति दीवाथी अलग नही है, चारो ओर प्रकाश करे तिम अवधि पिण ऐसा हूये ते 'अभ्यंतर' अवधिज्ञाननो उत्पाद अने विनाश ए दो वाते एक समयमे न होवे, एके समयमे एक ज वात हूइ. जिम दीवा उपजे एक समय अने विणसनेका अन्य समय तिम अभ्यंतर अवधिके एक समय एक ही वात होय. हिवै अवधिज्ञाने करी जदा एक द्रव्य देखे तदा पर्याय कितना देखे ए वात कहीये है-जदा एक द्रव्य परमाणु प्रमुख अवधि करी देखे तदा द्रव्यना पर्याय संख्याता देखे अने असंख्याता देखे; जघन्य तो चार पर्याय-रूप, रस, गंध, स्पर्श ए चार देखे. एह आठमा उत्पाद प्रतिपातद्वार संपूर्णम्. (५५) हिवै ज्ञान दर्शन विभंग एह तीन द्वार कहे है, ते यंत्रम्शान १ दर्शन २
विभंग ३ जिस अवधिशाने करी विशेष | सामान्य जाणे, पिण विशेष न समदृष्टिका तो ज्ञान कहीए अने जाणे ते 'साकार ज्ञान' कहीए. जाणे ते 'अनाकार दर्शन' कहीए मिथ्यात्वीके ते 'विभंगज्ञान' कहीए. स्वामी-समदृष्टि मिथ्यादृष्टि समदृष्टि मिथ्यादृष्टि । मिथ्यादृष्टि
भवनपतिसे लेकर नव अवेयक पर्यंत ते सर्व देवताना अवधिज्ञान अने विभंग ज्ञान क्षेत्र, काल आश्री दोनो सरीखा जानना. द्रव्य, पर्याय आश्री विशेष कुछ है. चोखे ज्ञान विना विशेष न जाणे ते समदृष्टिके चोखा है अने 'अनुत्तर' विमानवासी देवताने अवधिज्ञान होय है पिण विभंग नही. ते पांच 'अनुत्तर' विमानवासी देवताके जे अवधिज्ञान हुइ ते क्षेत्र, काल आश्री असंख्य विषय करके असंख्याता जानना; अने द्रव्य, पर्याय विषय आश्री ते ज्ञान अनंता कहीए. ए ज्ञान, दर्शन, विभंगरूप तीन द्वार वखाणेया. इति द्वारम् ९।१०।११.
अथ १२ मा 'देश' द्वार लिख्यते-नारकी, देवता अने तीर्थकर पति]नो ज्ञानथी अबास हुइ एहने शरीर संबंध प्रदीपनी परे सर्व दिशे प्रकाशक इनका अवधिज्ञान जानना. एतले नारकी, देवता, तीर्थकर ए अवधि करी सर्व दिशे देखे तथा शेष तिर्यंच, मनुष्य देशथी बी देखे अने सर्वथी बी देखे. तथा नारकी, देव, तीर्थंकर एहने अवधिज्ञान निश्चय होय; ओरोंके भजना जाननी. ए बारमा देशद्वार.
अथ क्षेत्रने मेले अवधिज्ञानका संख्यात असंख्यातपणा कथ्यते-जे अवधि जीवना शरीरसूं संबद्ध हुइ दीवानी कातिनी परे अलग न हूइ ते 'संबंध अवधिज्ञान' कहीए; अने जे
१ कहेवाय छ।
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