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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह वर्गणा' है. ते पिण ध्रुवानंतर वर्गणावत् बीच बीच अंतर पडनेसे चार प्रकारे जाननी. ते औदारिक आदि पांच शरीरने योग्य तो नही पिण अगले पुगलके विछडनेसे अने नवे पुद्गलके मिलनेसे घटती वधती शरीरने योग्यता अभिमुख हुइ तिस वास्ते ते 'तनु वर्गणा' २८ नाम. ध्रुवानंतर वर्गणावत् चार भेद जानने. तेहथी अधिक पुद्गलमय एक मिश्र स्कंध है. एह स्कंध घणा सूक्ष्म है अने कुछक बादर परिणाम है. इन दोनो परिणामके वास्ते 'मिश्र स्कंध' नाम. तेहथी अधिक पुद्गलमय 'अचित्त महास्कंध' है. ते घणा पुद्गल एकठा मिली ढिग रूप होता है. ते 'अचित्त महास्कंध' विस्रसा परिणामे करी केवलिसमुद्धातनी परे चउदे रज्यात्मक लोक व्यापे अने चार समयमे पीछे फिर कर स्वस्थानमे आवे. इम सर्व समय आठ जानने. एह स्कंध कदे हूये अने कदे नही बी होय. पुद्गल तो सर्व अचित्त ही है, तो इसका नाम 'अचित्त स्कंध' कयुं कह्या इति प्रश्न. अथ उत्तरम् केवली जद समुद्धात करे तदा जीवना प्रदेशे करी मिश्र जे कर्मना पुद्गल तिण करी सर्व लोक व्यापे ते 'सचित्त कर्म पुद्गल' कहीये. तिसके टालने वास्ते 'अचित्त' शब्द कीधा. इति संक्षेप करके वर्गणा वरूपम्. इण औदारिक आदि द्रव्यमे कौनसा गुरुलघु है अने कौनसा अगुरुलघु है ए वात कहीये है. औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस ए चार द्रव्य अने तैजस द्रव्यके नजीक जे द्रव्य है (ते) सर्व द्रव्य 'गुरुलघु' है, बादर परिणाम करके अने कार्मण, मनोद्रव्य, भाषाद्रव्य, आनप्राणद्रव्य अने भाषाद्रव्यके समीपका द्रव्य ते सर्व सूक्ष्म परिणाम करके 'अगुरुलघु' कहीये. जघन्य अवधिक विषयके ए गुरुलघु अने अगुरुलघु द्रव्य जाने देखे. हिवै द्रव्यकी वृद्धि हूया क्षेत्र, काल कितना वधे ए वात कहीये है. (४५) यंत्रसे इसका स्वरूप क्षेत्रथी कालथी मनोद्रव्य देखते लोकका संख्यातमा भाग | पल्योपमका संख्यातमा भाग द्रव्यथी कर्मद्रव्य , - ध्रुवानंतर वर्गणा, शून्यतर | चौद रज्वात्मक लोक देखे । पल्योपम किंचित् न्यून देखे वर्गणा आदि देखे तैजस, कार्मण शरीर तैजसः योग्य भाषायोग्य वर्गणा देखे. असंख्य द्वीप, समुद्र देखे ___असंख्य काल देखे __ अथ परमावधि ज्ञानना धणी उत्कृष्टा कौनसा सूक्ष्म द्रव्य देखे ते वात कहीये हैक्षेत्रके एक प्रदेशे रह्या परमाणु द्वयणुक आदिक द्रव्य परमावधिनो धणी देखे. अने कार्मण शरीर देखे. कार्मण शरीर असंख्याते प्रदेश नियमा अवगाहवे है. उत्कृष्ट अवधिनो धणी जितना अगुरुलघु द्रव्य जगमे है ते सर्व देखे. जो तैजस शरीर अवधिनो धणी देखे तो कालथी नव भव लगे देखे, ते नव भव असंख्य काल प्रमाणके जानने. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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