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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीव१० स्थिति-भाषाकी स्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. ११ अंतर-भाषाका अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट वनस्पति काल. १२ ग्रहण-भाषाके पुद्गल कायायोगसें ग्रहण करे. १३ व्युत्सर्ग-भाषाकी वर्गणाकू वचनयोगसे तजे-छोडे. १४ निरंतर-भाषाके पुद्गल प्रथम समये लेवे, दूजे समय नवे ग्रहण करे अने पीछले छोडे. एवं प्रकारे तीजे ४।५।६ यावत् अंतर्मुहूर्त ताई लेवे पीछेके छोडे; अंतसमये ग्रहण न करे, पीछले छोडे. इहां पहले समय तो लेवे ही अने चरम समयमे छोडे अने मध्यके असंख्य समयामे ले(वे) वी अने छोडे वी. ए दो बातें एकेक समयमे होवे.
(२३) शरीर पांचका यंत्रं श्रीप्रज्ञापना पद २१ मेथी.
नाम १
औदारिक १ | वैक्रिय २
| आहारक ३
तैजस ४ .
कामण
मनुष्य १ स्वामी २
४ गतिना चौदपूर्वधर
४गतिना गतिना जीव तिर्यंच २
मनुष्य
२ मूले सम० संस्थान ३ ६ षट् १, हुंड २ उत्तर समचतुरस्र नाना संस्थान नाना संस्थान
नाना अंगुलके असं- | अंगुलके असं जघन्य
देशोन १ हस्त
| अंगुलके असं- अंगुलके असंप्रमाण ख्यमे भाग | ख्यमे भाग
| ख्यमे भाग ख्यमे भाग उत्कृष्ट | १००० योजन
१,००,००० |१ हस्त प्रमाण १४ रजु प्रमाण सर्व
सर्व लोक तपस योजन
प्रमाण
पुदल
शा५। दिशासे
६ षट् दिशासे ६ षट् दिशासे
३१४५/६ दिशासे
કાકા दिशासे
चयना ५
औदारिक
भजना है।
भजना है
नियमा है। नियमा है
वैक्रिय
परस्पर
पांच शरीरका संयोग द्वार ६
भजना है नियमा है
आहारक
तैजस
भजना है
भजना है
भजना है
कार्मण
अल्प
बहु
४ अनंत गुणा ४ अनंत गुणा
| ३ असंख्येय | २ असंख्येय | १ सर्वेभ्यः द्रव्यार्थे गुणा गुणा
स्तोक प्रदेशार्थ
त्व
१ बधाथी।
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