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________________ ३० श्रीविजयानंदसूरिकृत [१ जीवसंज्ञा-गृद्धिरूपा मोहकर्मके उदय. १३ शोकसंज्ञा-विप्रलाप वैमनस्यरूपा मोहकर्मके उदय. १४ लोकसंज्ञा-स्वच्छंदे घटित विकल्परूपा लोकरूढि-श्वान यक्ष है, विप्र देवता है, काकाः पितामहः) अर्थात् काक दादा पडिदादा है, मोरकी पांखकी पवनसे मोरणीके गर्भ होता है इत्यादि रूढि लोकसंज्ञा. ज्ञानावरणी(य)का क्षयोपशम मोहनी(य)के उदयमं है. १५ धर्मसंज्ञा-क्षात्यादिसेवनरूपा मोहनी(य)के क्षयोपशमसे होय. १६ ओघसंज्ञा-अव्यक्त उपयोगरूपा, वेलडी रूंख पर चडे है. ज्ञानावरणी(य) क्षयोपशमसे है. उपरी १५ संज्ञा तो संज्ञी पंचेंद्री, सम्यग्दृष्टि वा मिथ्यादृष्टिने है यथासंभव. ओघसंज्ञा एकेंद्रादि जीवांके जान लेनी. ए सर्व नियुक्ती. (२०) अथ आहारादि संज्ञा ४ यंत्रं स्थानांगस्थाने ४ उद्देशे ४ वा पन्नवणा संज्ञापद ४ संज्ञा नाम | १ आहारसंज्ञा | २ भयसंज्ञा ३ मैथुनसंज्ञा | ४ परिग्रहसंज्ञा नारकी । २ संख्येय गुणे | ४ संख्येय गुणे १ स्तोक सर्वेभ्यः ३ संख्येय गुणे तिर्यम् २ संख्येय गुणे | १ सर्वसें स्तोक मनुष्य २ , १ स्तोक सर्वेभ्यः ४, ३ संख्येय गुणे देवता | १ स्तोक सर्वेभ्यः २ संख्येय गुणे - ३ ,, ४ , कारण ४४ कोठेके रीते हूया धी(धैर्यहीनात् । मा | मांस रुधिरकी पुष्टाइसें मूच्छा होनेते (सें) चार २ क्षुधा लगनेसें भयके उदय वेदके उदयते (सें) | उदयते(सें) उपगरणके आहारके देखे सुनेसें देखनेसेंला ५४ देखे सुनेसें आहारकी चिंता कामभोगकी उपगरणकी चिंता करे(रने से भयकी चिंतासें चिंतोना करे(रने से करनेसें (२१) सांतर निरंतर द्वारम् गतिभेद नारकी तिर्यच मनुष्य देवता अंतर जघन्य १ समय १ समय १ समय | १२ मुहूर्त १२ मुहूर्त १२ मुहूर्त जीवसंख्या जघन्य | १ जीव एक समये | प्रतिसमय अनंते १ जीव एक समय १ जीव एक समय उपजे उपजे | उपजे उपजे १ झाड । २ नियुक्तिने विषे। ३ वधाथी। ४ धीरज ओछी होवाथी । लोभके भयके वस्तुके स्त्रीके देखे सुनेसे देखे सुनेसें , उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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