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________________ नवतत्त्व संग्रह २३७ अनंतानुबंधी रहित योगका कारण कहीये है - अनंतानुबंधी के उदय १३ योग होते है, परंतु दस नही होते तिसका कारण कहीये है. उद्वेलना करता हूया अनंतानुबंधीकी समयदृष्टि प्राप्त मिथ्यात्व उदयके नही संक्रामआवलिका जां लगे अनंतानुबंधीका उदय तिसके उदय अभाव ते मरणका पिण अभाव है. भवां( त ? )रके अभाव ते वैक्रियमिश्र १, औदारिकमिश्र १, कार्मण १ इन तीनोका अभाव है; इस वास्ते अनंतानुबंधी भय जुगुप्सा के विकल्पोदयमे तथा उत्तर पदां हेतुयाका अभाव सूचन कर्या. तत्त्व ] अथ सदनका विशेष कहीये है - साखादनमे मिध्यात्वके अभाव ते प्रथम पद गया शेष पूर्वोक्त नव अनंतानुबंधी के विकल्प अभाव ते दस. ६ | ५ | २|३|४|१३. इस चक्र विषे प्रथम dai ३ करके योगां गुणाकार करके एक रूप ऊछा करणा यथा एकैक वेदमे तेरा योग है. एवं ३९ हूये. नपुंसक वेदे वैक्रियमिश्र नही. एवं एक काव्या ३८ रहै, इन ३८ करी एकैक काय वध गुण्या २२८ होय है. इन २२८ कूं एकेक इन्द्रियव्यापार गुण्या १९४० हुइ. इन ११४० कूं एकेक युग्मसं गुण्या २२८० हुइ. २२८० कूं एकैक कषाय चारसूं गुण्या ९१२०, इतने हेतुसमुदाय हुये. एवं शेष विषे भावना करवी. दस पूर्वोक्त अने द्विकायवध युक्त ग्यारे हूये; तिहां पूर्ववत् २२८०० भंगा. भय प्रक्षेपणे ते ११ हूये; तिहां ९१२० भंगा. एवं जुगुप्सा प्रक्षेपे ९१२०. सर्व ग्यारे समुदायना भंगा ४१०४०. पूर्वोक्त दस त्रिकायवध प्रक्षेपे बारा होते है; तिहां पिण पूर्ववत् ३०४००, अथवा द्विकाear भय प्रक्षेपे पण बारा होते हैं; तिहां पिण २२८०० एवं द्विकायवध जुगुप्सा प्रक्षेपे २२८००, अथवा भय जुगुप्सा प्रक्षेपे १२; तिहां पिण ९१२० एवं सर्व बारा समुदायके ८५१२० भंगा. दस पूर्वोक्त चार काय वध युक्त तेरा होते है. पूर्ववत् तिहां २२८००, अथवा भय त्रिकायवध प्रक्षेपे तेरा; तिहां ३०४०० भंगा एवं त्रिकायवध जुगुप्सा प्रक्षेपे ३०४००, अथवा द्विकायar भय जुगुप्सा प्रक्षेपे १३; तिहां भांगा २२८०० एवं सर्व तेराके भंग संख्या १०६४००. दस पूर्वोक्त पंचकायवध प्रक्षेपे चौदां हुइ, तिहां मंगा ९१२०, अथवा चार काय वध प्रक्षेपे चौदां; तिहां २२८०० भंगा. एवं चतुःकायवध जुगुप्सा प्रक्षेपे २२८०० अथवा त्रिकाear भय जुगुप्सा प्रक्षेपे १४; तिहां ३०४००. सर्व एकत्र मेले ८५१२०. पूर्वोक्त दस पट्कायवध युक्त पंदरा हुइ; तिहां १५२० भंगा. पंचकायवध प्रक्षेपे १५; तिहां ९१२०, एवं पांच काय वध जुगुप्सा प्रक्षेपे ९९२०. अथवा चार काय वध भय जुगुप्सा प्रक्षेपे १५ तिहां २२८०० भंगा, सर्व एकत्र करे ४२५६०. दस पूर्वोक्त षट्कायवध भय युक्त १६ होते हैं; तिहां भांगा १५२०. षट्कायवध जुगुप्सा प्रक्षेपे १५२०. अथवा पांच काय वध भय जुगुप्सा प्रक्षेपे १६; तिहां ९९२० मंगा. सर्व एकत्र करे १२१६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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