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________________ २२४ श्रीविजयानंदसूरिकृत [८ बन्धआगे गुणस्थान समुच्चयवत्. अथ भव्यरचना गुणस्थानवत् १४ सर्वे. अथ अभव्य प्रथम गुणस्थानवत्. __ अथ उपशम रचना गुणस्थान ८ चौथा आदि उदयप्रकृति १०० है. मिथ्यात्व १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, अनंतानुबंधि ४, एकेंद्री १, थावर १, विकलत्रय ३, मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १, आनुपूर्वी ३ देव विना, आहारकद्विक २, तीर्थकर १; एवं २२ नास्ति. 4 अप्रत्याख्यान ४, वैक्रियद्विक २, देवत्रिक ३, नरकगति १, नरक-आयु १, दुर्भग ४ अ १०० ५०१, अनादेय १, अयश १; एवं १४ व्यवच्छेद ५ दे | ८६ प्रत्याख्यान ४, तिर्यंच-आयु १, नीच गोत्र १, उद्योत १, तिर्यंच गति १ विच्छित्ति थीणत्रिक ३ विच्छित्ति ७ अ | ७५ आगले च्यार गुणस्थानोमे समुच्चय गुणस्थानवत्. अथ क्षयोपशम सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ४-४।५।६।७ समुच्चयगुणस्थानवत्. अथ क्षायिक सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ११-चौथा आदि; उदयप्रकृति १०६ है. मिथ्यात्व १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, अनंतानुवंधि ४, एकेंद्री १, थावर १, विकलत्रय ३, मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १; एवं १६ नास्ति.. आहारकद्विक २, तीर्थकर १ उतारे. अप्रत्या० ४, वैक्रिय-अष्टक ८, मनुष्य| अ १०३ आनुपूर्वी १, तिर्यंच-आनुपूर्वी १, तिर्यंच-आयु १, उद्द्योत १, तिर्यंच गति १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १; एवं २० विच्छित्ति प्रत्याख्यान ४, नीच गोत्र १ विच्छित्ति आहारकद्विक २ मिले. थीणत्रिक ३, आहारकद्विक २ विच्छित्ति | or | ram आगे समुच्चयवत्. अथ मिश्र १, सास्वादनसम्यक्त्व १, मिथ्यात्व १, आपणे आपणे गुणस्थानवत्. अथ संज्ञी रचना गुणस्थान १२ आदि के उदयप्रकृति ११३ अस्ति. एकेंद्री १, थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, विकलत्रय ३, तीर्थंकर १; एवं ९ नास्ति. | मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १, आहारकद्विक २; एवं ४ उतारे. मिथ्यात्व १, | मि | १०९ अपर्याप्त १ विच्छित्ति नरक-आनुपूर्वी १ उतारी. अनंतानुबंधि ४ विच्छित्ति ३ मि १०० आनुपूर्वी ३, नरक विना उतारी. मिश्रमोह० १ मिली आगे समुच्चयवत्. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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