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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीवभवनपति | प्रतरके असंख्यातमे भाग नभःप्रदेश अंगुल प्रमाण श्रेणीके प्रथम वर्गमूल | तुल्य जानने.
के असंख्यातमे भाग प्रदेश प्रमाण.
संख्याते योजन प्रमाण खंड एकेक प्रतरके असंख्यातमे भाग.
| व्यंतरे करी अपहरता संपूर्ण प्रतर अपहरे. | इहां संख्याते जोजन प्रमाण खंड चतुरस्र.
२५६ अंगुल का खंड चउरस. तितना खंड एकेक जोतिषी करके अपहर्या संपूर्ण प्रतर अपहराय. घनीकृत सर्वत्र है.
अंगुल प्रमाण चौडी सात रजु प्रमाण लंबी श्रेणी तिसकी असत् कल्पना २५६ श्रेणी, तिसका प्रथम वर्गमूल १६ का, दूजा वर्गमूल ४ का, तीजा २ का. तीजे वर्गमूलकू दूजे वर्गमूलसू गुण्या ८ होइ. | परमार्थथी तो असंख्याती है. इम कल्पना| स्वरू(प) ८ श्रेणि प्रमाण चौडी, सात रजु लंबी सूची नीपजे. तिस सूचीमे जितने आकाशप्रदेश है तितने सौधर्म ईशान देवलोकके देवता है वर्तमान कालमे. इत्यलम्.
श्रेणिका ग्यारमा वर्गमूल काढीने तिस
ही श्रेणिके प्रदेशांकू ग्यारमे वर्गमूलका सनत्कुमार महेन्द्र श्रेणीके असंख्यातमे भाग है. | भाग दीये जो हाथ लगे तितने देवता है.
एवं जितर(ना)मा वर्गमूल होवे तिस ही
का भाग. ब्रह्मदेव
श्रेणिका ९ मा मूल. श्रेणिके प्रदेशो भाग.
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लांतक
महाशुक्र
सहस्रार
आनतादि४ प्रैवेयक ९
श्रेणि ७ स्वमूल. भाग उपरवत्. श्रेणि ५ स्वमूल. भाग देना उपरवत्. श्रेणि ४ स्वमूल. भाग उपरवत् देले]णा. पल्योपमके असंख्यातमे भाग गमयप्रमाण. पल्योपमके बृहत्तर असंख्यातमे भाग. पल्योपमके अतिवृहत्तम असंख्यातमे भाग. संख्याते, क्षेत्रइस्वत्वात्.
अनुत्तर ४
संख्याते.
सर्वार्थसिद्ध
१ आकाश-प्रदेश।
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