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२०२ श्रीविजयानंदसूरिकृत
[ ८ बन्धतरआहारगा ३, अनं०पजत्तगा ४; ए चार उद्देशे एक सरीपे है, एवं सर्व उद्देशो १० हूये. ____अथ अचरमना ११ मा उद्देशा लिख्यते-मनुष्य वर्जी २३ दंडके आयु वर्जी पापकर्म आदि ८ आश्री सर्व बोला मे २२ भांगा. आयु आश्री नरक १, तिर्यंच २, देव ३ मे मिश्रदृष्टिमे भंग ३ तीजा. पृथ्वी १, अप २, वनस्पति ३, तेजोलेश्यीमे ३ तीजा भंग. विगलेंद्रीमे सम्यक्त्व १, ज्ञान आदि ३ ए ४ मे ३ तीजा भंग, मनुष्य अचरममे अलेश्यी १, अकेवली २, अयोगी ३; ए ३ नही, शेष बोल ४३ मे जहां चौथा भंग है सो नही कहना और सर्व प्रथम उद्देशवत् इति बंध अलम्.
(१५८) (अतीतादि आश्री भंग) । (१५९) (भव आश्री भंग) ___ भंग | अतीत । वर्तमान | अनागत | घणे भव अपेक्षा एक भव अपेक्षा
श्रेणिथी गिर फेर ११ मे
कति समये उपशांत पूर्व भवे ११ मे, वर्त- सयोगीने छहले
माने क्षीणमोह । समये पूर्व भवे ११ मा, वर्त-. | मान नही, आगे
११ मे से गिर फिर होगा ११
श्रेणि पावे नही सिद्ध १४ मे गुणस्थाने उपशांत पहिले ही उपशांत मोहके
पाया है प्रथम समये । क्षपकश्रेणि चढ्या,
शून्य उपशम कदे नही भव्य मोक्षाई १० मे गुणस्थानवाळा
भव्य
अभव्य
मिथ्यादृष्टि वा
अभव्य
(१६०) संपरायके बंधके भंग
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अभव्य वा भव्यक
उपशांतमोह गुणस्थान
SSI
भव्य
क्षीणमोह आदिक
एह दोनो यंत्र भगवतीजीके.
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