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________________ १८६ श्रीविजयानंदसूरिकृत [७ निर्जराअथ (१२२) व्यंतर २८ का यंत्र तिर्यग लोके चिंतवे व्यंतरनाम | पिशाच , भूत | यक्ष | राक्षस | किन्नर | कपुर महोरग गान्धर्व नगरसंख्या असंख्य नगरपरिमाण जंबूद्वीप मध्यम विदेह ए जघन्य भरतक्षेत्र कलंब चिह्न सुलस वङ वृक्ष षडग अशोक चंपग नाग तुंबर - वर्ण श्याम श्याम श्याम धवल नील धवल श्याम श्याम काल । सरूप पूर्णभद्र भीम किन्नर सत्पुरुष अति गीतरति काय महाकाल प्रतिरूप | मणिभद्र | महाभीम किंपुरुष | (रुष) महाकाय गीतयश सामानिक ४००० आत्मरक्षक १६,००० 444 अनीक NNNN अग्रमहिषी परिषद् महा व्यंतर लघु पणपन्नी इसिवाइ भूयवाइ कंदिय कुहुंड पयगदेव कंदिय संनिहिय धाइ | इसि | ईसरप | सुवत्स हास्य | श्वेत | पयंग ११ समाणि | विधाइ | इसिपाल हास्यमहेष सुविशाल | रति पयगे १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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