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१३४ श्रीविजयानंदसूरिकृत
[२ अजीवगुण, (३४) बेइंद्री उत्कृष्ट स्थिति संख्येय, (३५) वायुकाय उत्कृष्ट स्थिति संख्येय, (३६) अप्काय उत्कृष्ट स्थिति संख्येय, (३७) वनस्पति उत्कृष्ट या देव, नरक जघन्य वि०, (३८) पृथ्वीकाय उत्कृष्ट स्थिति संख्येय, (३९) उद्धार पल्यनो असंख्य भाग संख्येय, (४०) उद्धार पल्यनो काल असंख्य गुण, (४१) उद्धार सागरनो काल संख्येय, (४२) जघन्य अद्धा पल्यका असंख्य भाग असंख्येय, (४३) उत्कृष्ट अद्धा पल्यका असंख्य भाग असंख्य, (४४) अद्धा पल्यनो काल असंख्य गुण, (४५) उत्कृष्ट मनुष्यनी कायस्थिति संख्येय, (४६) अद्धासागरनो काल संख्येय, (४७) उत्कृष्ट देव-नारक-स्थिति संख्येय, (४८) अवसर्पिणी उत्सपिणी काल सं०, (४९) क्षेत्र पल्यनो काल असंख्य गुण, (५०) क्षेत्रसागरनो काल संख्येय गुण, (५१) तेउनी उत्कृष्ट कायस्थिति असंख्य, (५२) वायुनी उत्कृष्ट कायस्थिति विशेष०, (५३) अपनी उत्कृष्ट कायस्थिति विशेष०, (५४) पृथ्वीनी उत्कृष्ट कायस्थिति विशेष०, (५५) कार्मण पुद्गलपरावर्तन अनंत गुण, (५६) तैजस पुद्गल परावर्तन अनंत गुण, (५७) औदारिक पुद्गल परावर्तन अनंत, (५८) श्वासोच्छ्वास पुद्गल परावर्तन अनंत, (५९) वैक्रिय पुद्गलपरावर्तन अनंत गुण, (६०) वनस्पतिनी उत्कृष्ट कायस्थिति असंख्य, (६१) अतीत अद्धा अनंत गुण, (६२) अनागत अद्धा विशेष अधिक.
(१०७) द्रव्य ६; गुण चार २ एकेकना नित्य है धर्म अरूपी १ । अचेतन २ । अक्रिया ३ । गतिसहाय ४ अधर्म
स्थितिस्वभाव , आकाश
अवगाहदान ,
वर्तमान व जीर्ण,, रूपी , _, , सक्रिय ,,
पूरण-गलन , जीव अनंत ज्ञान ,, अनंत दर्शन ,, अनंत चारित्र,, अनंत वीर्य ,
(१०८) पर्याय षट् द्रव्यना चार चार
काल
देश अनित्य
प्रदेश अनित्य
अगुरुलघु
धर्म१ । स्कंध नित्य । अधर्म २
आकाश३
अनागत
काल४ पुगल जीव
अतीत वर्ण
वर्तमान रस
गन्ध
स्पर्श
गुरु
लघु
अगुरुलघु
अव्याबाध
पुद्गलका वर्ण आदि, धर्म अगुरुलघु पर्याय.
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