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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह १२७ अजुगति में एक समय पर भव जाता लागे, अनाहारिक नास्ति. एक वक्रमें दो समय लागे प्रथम समय अनाहारिक, दूजे समये आहार लेवे. द्विवक्रमें तीन समय लागे प्रथम दो समय अनाहारी, तीजे समये आहार लेवे. तीन वक्रमें चार समय लागे, प्रथम तीन समय अनाहारी, चौथे समय आहार लेवे. चार वंकामें पांच समय लागे, प्रथम चार समय अनाहारी, पांच मे समये आहार लेवे. श्रीभगवतीजी (सू.) मे तो तीन समय अनाहारिक कह्या है तो चार समय कैसे हूये तिसका उत्तर-श्रीभगवतीजीमे बहुलताइकी विवक्षा करके तीन समय कहे है. अल्पताकी विवक्षा नही करी, कदे कदे इक चार समय अनाहारिक होता है. कोइ कहै जो पांच समयकी गति न मानीये तो क्या काम अटके है तिसका उत्तर-प्रथम तो पूर्वाचार्योने पांच समयकी गति मानी है, श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आदि देइ सर्व वृत्तिकारोने मानी है, इस वास्ते सत्य है. तथा सातमी नारकीके स्थावरनाडीकें कूणेवाला जीव मरीने 'ब्रह्मदेव' लोककी स्थावर नाडीके कूणे मे उपजणहार पांच समयकी विग्रह विना उपज नही सकता, एह विचार सूक्ष्म बुद्धिसे विचार लेना. इस विना काम अटके है. इसकी साख भगवतीकी वृत्तिमे तथा पन्नवणाकी वृत्तिमे वा (बृहत्)संघयणी (गा. ३२५-३२६)मे है. (८९) श्रीभगवती शते १३मे चतुर्थ उद्देशके प्रदेशांकी परस्परस्पर्शनार्यन्त्रम् आकाधर्मास्तिकायके अधर्मास्तिकायके शास्ति- जीवके पुद्गलके कालके कायके धर्मास्तिकायका एक प्रदेश शा५।६ प्रदेश ४५/६७ अनंते अनंते | अनंते स्पर्श अधर्मास्तिकायका ,, ४।५।६७ ३।४।५।६ - आकाशास्तिकायका.... श२।३।४।५।६७|श।३।४५/६७ जीवका ४५/६७ ४५/६७ परमाणुपुद्गल ४॥५॥६७ ४।५।६७ पुद्गलपद शेयम् ४ ६ ८ | १० १२ १४ १६ | १८ | २० २२ जघन्य पद ७ | १२ | १७ | २२ | २७ | ३२ ३७ | ४२ | ४७ | ५२ | । ०७ | १२| _ _उत्कृष्ट " चूर्णिकारे नयमते करी एक अवग्रही प्रदेशना दोय गिन्याहअने टीकाकारेमाणु करी व्याख्यान कर्या है. इति रहस्सं पुद्गलकी स्पर्शनामे. परमाणु जघन्य क्ष अधर्मके स्पर्शे, तिनका स्वरूप पीछे लिख्या ही है; अने दोय प्रदेशी आदिक में १ ग्रंथकारे १२४ मा पृष्ठनी पछी आनी योजना करी छे, परंतु छपावती वेळा ए पृष्टमा समावे आ यंत्र अहीं आपेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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