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तत्त्व ]
नवतत्त्व संग्रह
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इहां छठे गुणस्थानकी उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्तकी कही है, सो प्रमत्त गुणस्थान अंतर्मुहूर्त ही रहे है, अने जे श्रीभगवतीजीमे प्रमत्त संयतिके कालकी पूछा करी है तिहां गुणस्थान श्री नही है. तहां तो प्रमत्तका सर्व काल एकठा कर्या देश ऊन कोड पूर्व कला है. पण छठे गुणस्थानकी स्थिति नही कही छठे गुणस्थानककी स्थिति अंतर्मुहूर्तकी कही है. उक्तं पंचसंग्रहे ( गा० ७८ ) -
गाथा - "समया अंतमहु (मुहू) पमत्त अ (म) पत्तयं भयंति मुणी ।
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मुनि देश ऊन पूर्व
देश ऊन पूर्व कोड
अर्थ – समय से लेइ अंतर्मुहूर्त ताई प्रमत्त अप्रमत्तपणा भजे - सेवे कोड आपसमे दोनो ही गुणस्थानमे रहै, ऐतावता छठे सातमे दोनोहीमे रहै, परंतु एकले छठे अथवा एकले सातमे देश ऊन पूर्व कोड नही रहै. इति गाथार्थः. शंका होय तो भगवतीजीकी टीकामे का है सो देख लेना. अने मूल पाठमे देश ऊन पूर्व airat कही है सो प्रमत्तका सर्व काल लेकर कही है. परंतु छठे गुण आश्री स्थिति भगवतीजी नही कही तथा सातमे गुणस्थानकी स्थिति जघन्य एक समयकी कही है. अने श्रीभगवतीजी सर्व अप्रमत्तके काल आश्री जघन्य तो अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देश ऊन पूर्व कोडकी, तिसका न्याय चूर्णिकारे ऐसा कहा है-सात मे गुणस्थान से लेह कर उपशांतमोह लगे सर्वगुणस्थान अप्रमत्त कहीये. तिन सर्वका काल जघन्य एकठा करीये ते जघन्य अप्रम तका काल ला. इस अपेक्षा जघन्य स्थिति है, पिण सातमेकी अपेक्षा नही. तथा टीकाकारने मते अप्रमत्त गुणस्थानवाला अंतर्मुहूर्त पहिला काल न करे, इस वास्ते अंतर्मुहूर्तकी स्थिति हैं. आगे त केवल विदंति, सूत्राशय गंभीर है.
प्रमाण द्वार
लोकस्य ७२ (द) र्शन द्वार
देणा पुव्वकोडीओ (देणपुच्त्रकोर्डि) अण्णोणं चिट्ठेहिं (चिट्ठेति) भयंता ॥"
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अनंते
पल्योप
मके असंख्य भागे
लोकके
सर्व असंख्या
लोक
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१ समयादन्तर्मुहूर्तं प्रमत्ततामप्रमत्ततां भजन्ति मुनयः ।
. देशोनपूर्वकोटिमन्योन्यं विष्टन्ति भजमानाः ॥
२ एटला पूरतुं । ३ गाथानो अर्थ ।
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४ सर्वज्ञ जाणे छे ।
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सर्व दूजे लोक वत्
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