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________________ अन्यप्रणेतानी जीवनरेखा आथी ते धीरे धीरे गुप्त रूपे पोतानी कुटिल जाळ पाथरी रह्यो हतो. निर्भय सूरिवर तो क्यारना ए खस्थ बनी मृत्युनु स्वागत करवानी तैयारी करी रह्या हता. आवे वखते पण एमना शरीरनी शोभा चन्द्रकान्तिने हास्यास्पद बनावी रही हती. एमना मुखमांथी 'अर्हन्' शब्दनो दिव्य ध्वनि नीकळी रह्यो हतो. सामे बेठेलो शिष्यपरिवार आ सर्वोत्तम नादन उत्सुक हृदये पान करी रह्यो हतो. एटलामा समय पूरो थयो. लो भाइ अब हम जाते हैं, अर्हन् एम कहेतां कहेतां ए सूरीश्वर खर्गे संचर्या. मनोहर रात्रि भयानक रूपे परिणमी. शांत रस करुणरूपे परिवर्तन पाम्यो. बीजे दिवसे एमना देहनो अग्निसंस्कार करवामां आव्यो. आ प्रमाणे एमना स्थूल देहनो अस्त थयो, परंतु साधुताना साचा आदर्शनी एज देह द्वरा आचरी बतावेल ज्योति तो सदाने माटे उदयवंती बनी गइ. आ प्रातःस्मरणीय सूरिवर्य विद्वानोना निःसीम प्रेमी हता. 'विद्याव्यासंगने लइने एमने हाथे बहु ग्रंथोनो उद्धार थयो छे. अनेक जनोने एमणे सन्मार्गी बनाव्या छे. तेमां खास करीने 'पंजाब' देश उपर एमनो पारावार उपकार छे. ए देशने उद्देशीने एमने जैन धर्मना जन्मदाता तरीके संबोधी शकाय. एमनी यशःपताकारूप त्यांना अनेक जैनमंदिरो आजे पण आ वातनी साक्षी पूरी रह्या छे. 'सिद्धाचल'मां एमनी पाषाणमयी प्रतिमा स्थापवामां आवी छे ए एमना प्रत्येना सज्जनोनो प्रेम जाहेर करे छे. अमदावाद, पाटण, वडोदरा, जयपुर, अंबाला, लुधियाना वगेरे स्थलो एमनी मूर्ति तेमज चरणपादुकाथी विभूषित बन्यां छे ए एमनी धर्मसेवानो प्रताप छे. 'गुजरांवाला' शहरमा एमनी स्मृतिरूपे भव्य समाधिमंदिर बनावायु छे ए त्यांनी जनतानुं मन एमनी तरफ केटलं आकर्षायेलं हतुं ते सूचवे छे. - जैन साहित्यने समृद्ध बनाववा तेमणे केवो सतत प्रयास कर्यो छे ए तेमनी नीचे मुजब तत्वनिर्णयप्रासादगत जीवनचरित्रने आधारे रजु कराती विविध कृतिओ कही रही छेः (१) नवतत्त्वसंग्रह सं. १९२४-२५, (२) आत्मवावनी सं. १९२७, (३) चोवीसजिनस्तवन सं. १९३०, (४) जैनतत्त्वादर्श सं. १९३७-३८, (५) अज्ञानतिमिरभास्कर सं. १९३९-४१, (६) सत्तरभेदी पूजा सं. १९३९, (७) सम्यक्त्वशल्योद्धार सं. १९३९-४१, (८) वीसस्थानक पूजा सं. १९४०, (९) जैनमतवृक्ष सं. १९४२, (१०) अष्टप्रकारी पूजा. सं. १९५३, (११) चतुर्थस्तुतिनिर्णय (भा. १) सं. १९४४, (१२) श्रीजैनप्रश्नोत्तरावली सं. १९४५, (१३) चतुर्थस्तुतिनिर्णय (भा. २) सं. १९४८, (१४) नवपदपूजा सं. १९४८, (१५) स्नात्रपूजा सं. १९५० अने (१६) तत्वनिर्णयप्रासाद सं. १९५१. ___ अंतमां एटलं ज निवेदन करीश के आत्मभावमा रमण करनार श्रीविजयानन्द सूरीश्वरनो जन्म सार्थक थयो छे. जेमने एमना दर्शननो लाभ मळ्यो छे तेमनी नेत्रप्राप्ति सफळ थइ छे. जेमने एमनो सुधामय उपदेश सांभळवानी तक मळी छे तेमना कर्ण धन्यपात्र छे. जे माताए आ सूरिरत्नने जन्म आप्यो तेमने सहस्रशः धन्यवाद अने वन्दन घटे छे. जे जैन संघे एमनुं गौरव कयु छे ते विचक्षण संघने मारा प्रणाम छे. जे 'भारत' भूमि आवा महात्माओनी जीवनभूमि बने छे ते बहुरला वसुन्धरा सदा जयवंती वर्तों. - १सन्मतितर्क जेवा प्रौढ ग्रन्थनु एमने पठन कर्यु हतुं एम मानवानां खास कारणो मळे छे. २२०००० स्त्रीपुरुषोने धर्ममार्गे चढाववा उपरांत एमणे केटलाए स्थानकवासी साधुओने पण जैन धर्मनी प्रशस्त नौकाना कर्णधार बनाव्या. ३ उपदेशबावनी ते आ ज होय एम जणाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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