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________________ तत्त्व ] नवतत्त्वसंग्रह आहारक अंगोपांग १, आहारक संघातन १, आहारक बंधन १, ए ४ रहित कीयां ८९ की सत्ता. तीर्थकर टले ८८. नरक गति १, नरक-आनुपूर्वी १, ए २ टले ८६. देव-गति १, देवआनुपूर्वी १, वैक्रिय शरीर १, वैक्रिय अंगोपांग १, वैक्रिय संघातन १, वैक्रिय बंधन १; एवं ६ टले ८०. नरकगति योग्य ८० मे ६ घालीये ८६ कीजे-नरक-गति १, नरक-आनुपूर्वी, वैक्रिय चतुष्क ४, एवं ८६ नी सत्ता; अथवा ८० मे ६ घाले-देव-गति १, देव-आनुपूर्वी १, वैक्रिय ४; एवं ६ घाले ८६ देवगति योग्य जाननी. तथा ८० मे मनुष्य-गति १, मनुष्य-आनुपूर्वी १, ए २ टले ७८ नी सत्ता. ए पूर्वोक्त सात ठाम संसारी जीवने न हुइ. पिण [क्षपक श्रेणे नही क्षपक श्रेणे ए सत्ता जाणवी. ९३ माहेथी १३ रहित कीजे, तेनरकद्विक २, तिर्यंचद्विक २, एकेन्द्रिय आदि चार जाति ४, स्थावर १, आतप १, उद्योत १, सूक्ष्म १, साधारण १; एवं १३ टली ८० ए सत्ता क्षपक श्रेणे. तीर्थंकर टाले ७९. ८९ मे तेरा एही टले ७६ की सत्ता. क्षपके ८८ माहेथी तेरें टले ७५ की सत्ता क्षपकने. हिवै नवनी सत्ता-मनुष्यगति १, पंचेन्द्रिय १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, सुभग १, आदेय १, यश १, तीर्थकर १; एवं ९. अयोगी गुणस्थानके छहले समय तीर्थकरने ए सत्ता; सामान्य केवलीने तीर्थकरनाम विना ८ नी सत्ता. गुणस्थान उपर सुगम है. 4. 4. 4. गोत्रका बंध-उंवा उवा स्थान १ । नी नी गो० उदयस्थान । | 0 ! •y | गो० सत्तास्थान | ० अंतरायका वंध स्थान १ अं० उदयस्थान ० अं० सत्तास्थान ५ ५ । ० ज्ञानावरणीय भंग२ ० | ज्ञानावरणीयके भंग २. बंध ५ का उदय ५, सत्ता पांच; १ बंध नही, उदय ५, सत्ता ५; एवं २ भंग. दर्शनावरणीय भंग % C0 CM Cw DSC0 3 09 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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