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स्वयंभू स्तोत्र ]
श्रीपद्मप्रभजिन-स्तुति
(मुक्तादाम छन्द)
पद्मप्रभ पद्म समान शरीर, शुचि लेश्याधर रूप गम्भीर ॥
परम श्री शोभित मूर्ति प्रकाश,
कमल सूरजवत भव्य विकाश ॥ २६ ॥
धरत ज्ञानादि ऋद्धि अविकार,
परम ध्वनि चारु समवसृत सार ॥
रहे अरहन्त परम हितकार,
धरी बोध श्री मुक्ति मंझार ॥ २७॥
प्रभू तन रश्मिसमूह प्रसार,
बाल सूर्य सम छवि धरतार ॥
नर सुर पूर्ण सभा में व्यापा,
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जिम गिरि पद्मराग मणि तापा ॥ २८ ॥
सहस पत्र कमलों पर विहरे,
नभ में मानो पल्लव प्रसरे ॥
कामदेव जेता जिनराजा,
करत प्रजा का आतम काजा ॥ २९ ॥
तुम ऋषि गुण सागर गुण लव भी,
कथन न समरथ इन्द्र कभी भी ॥
हूँ बालक कैसे गुण गाऊँ,
गाढ़ भक्ति से कुछ कह गाऊँ ॥ ३० ॥
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