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[ ८३
स्वयंभू स्तोत्र ]
श्रीसुमतिनाथजिन-स्तुति
(त्रोटक छन्द) मुनिनाथ सुमति सत् नाम धरे,
सत् युक्तिमई मत तुम उचरे ॥ तुम भिन्न मतों में नाहिं बने,
सब कारज कारक तत्व घने ॥२१॥
है तत्त्व अनेक व एक वही,
तत्त्व भेद अभेदहि ज्ञान सही। उपचार कहो तो सत्य नहीं,
इक हो अन ना वक्तव्य नहीं॥२२॥
है सत्त्व असत्त्व सहित कोई नय,
तरु पुष्प रहे न हि व्योम कलप। तव दर्शन भिन्न प्रमाण नहीं,
स्व स्वरूप नहीं कथमान नहीं ॥२३॥
जो नित ही होता नाश उदय,
नहिं, हो न क्रिया, कारक न सधय॥ सत् नाश न हो नहिं जन्म असत्,
जु प्रकाश भये पुद्गल तम सत् ॥२४॥
विधि व निषेध सापेक्ष सही,
गुण मुख्य कथन स्याद्वाद यही॥ इम तत्त्व प्रदर्शी आप सुमति,
थुति नाथ करूँ हो श्रेष्ठ सुमति ॥२५॥
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