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स्वयंभू स्तोत्र ]
श्री अजितनाथ जिन-स्तुति
(मालिनी छन्द) दिवि से प्रभु आकर जन्म जब मात लीना। घर के सब बन्धु मुखकमल हर्ष कीना॥ क्रीडा करते भी जिन विजय पूर्ण पाई। अजित नाम रक्खा जो प्रगट अर्थ दाई ।।६ ॥
अब भी जग लेते नाम भगवत् अजित का। सत् शिवमगदाता वर अजित तीर्थङ्कर का ॥ मंगल कर्ता है परम शुचि नाम जिनका। निज कारज का भी लेत नित नाम उनका ॥७॥
जिम सूर्य प्रकाशे, मेघदल को हटाकर। कमल वन प्रफुल्लैं, सब उदासी घटाकर। तिम मुनिवर प्रगटे, दिव्य वाणी छटाकर। भवि गए आशय गत, मल कलंक मिटाकर ।।८।।
जिसने प्रगटाया धर्म भव पारकर्ता। उत्तम अति ऊँची, जान जन-दुःख हरता। चंदन सम शीतल, गङ्ग हृद में नहाते। बहुघाम सताए हस्तिवर शांति पाते ॥९॥
निज ब्रह्म रमानी, मित्र शत्रु समानी। ले ज्ञान कृपाणी, रोषादि दोष हानी॥ लहि आतम लक्ष्मी, निजवशी जीत कर्मा। भगवन अजितेश, दीजिए श्री स्वशर्मा ॥१०॥
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