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स्वयंभू स्तोत्र ]
[ ७५ पद्यानुवाद श्री आदिनाथ जिन-स्तुति
(गीता छन्द) जो हुये हैं अरहन्त आदि, स्वयं बोध सम्हारके। जो परम निर्मल ज्ञान चक्षु, प्रकाश भवतम हारके। निज पूर्ण गुणमय वचन कर से, जग अज्ञान मिटा दिया। सो चन्द्र सम भवि जीव हितकर, जगत माहिं प्रकाशिया॥१॥
सो प्रजापति हो प्रथम जिसने, प्रजा को उपदेशिया। असि कृषि आदि कर्म से, जीवन उपाय बता दिया । फिर तत्त्वज्ञानी परमविद,अद्भुत उदय धार ने। संसार भोग ममत्व टाला, साधु संयम धारने ॥२॥
इन्द्रियजयी, इक्ष्वाकुवंशी मोक्ष की इच्छा करे। सो सहनशील सुगाढ व्रत में, साधु संयम को धरे । निज भूमि महिला त्याग दी, जो थी सती नारी समा। यह सिन्धु जल है वस्त्र जिसका, और छोड़ी सब रमा॥३॥
निज ध्यान अग्नि प्रभाव से रागादि मूलक कर्म को। करुणा बिना है भस्म कीने चार घाति कर्म को॥ अरहन्त हो जग प्राणि हित सत् तत्त्व का वर्णन किया। फिर सिद्ध हो निज ब्रह्मपद अमृतमई सुख नित पिया॥४॥
जो नाभिनन्दन वृषभ जिन सब कर्म मल से रहित हैं। जो ज्ञान तन धारी प्रपूजित साधुजन कर सहित हैं। जो विश्वलोचन लनु मतों को जीतते निज ज्ञान से। जो आदिनाथ पवित्र कीजे, आत्म मम अघ खान से॥५॥
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