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________________ वृहद् आध्यात्मिकपाठ संग्रह सम्पूर्ण जिनागम में एक वीतरागभाव को ही दुःखों से मुक्ति का मार्ग घोषित किया गय है । यद्यपि स्वभाव दृष्टि से प्रत्येक आत्मा अचलित विज्ञानधन स्वरूप भगवान आतमा है, तथापि अनादि से अपने स्वभाव को भूलने के कारण यह जीव परद्रव्यों और शुभाशुभ भावें में एकत्व बुद्धि करके चतुर्गति में भ्रमण कर रहा है। महापुण्य के उदय से यह मनुष्यभव और जैन कुल प्राप्त हुआ तथा वीतरागी देव-शास्त्र-गुरू का समागम मिलने पर भी हमारी अनादिकालीन विपरीत रूचि के कारण हम उनके समागम से आत्महित में प्रयत्नशील नहीं हो पाते। अतः पञ्चेन्द्रिय विषयों की रूचि शिथिल करके वीतरागता की रूचि पुष्ट करने हेतु जैन श्रावक को जिनदर्शन, पूजन-पाठ तथा स्वाध्याय आदि षट् आवश्यक कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा दी जाती है। जैन समाज में अध्यात्म रसपोषक सैकड़ों पूजन भजन स्तोत्र आदि प्रचलित है। इनके अनेक संकलन यथा-सम्भव प्रकाशित होने पर भी अध्यात्म एवं वैराग्य रसवर्धक सामग्री के संकलन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, बापूनगर, जयपुर द्वारा सन् 1987 में वृहद् अध्यात्मिक पाठ संग्रह प्रकाशित किया गया। उसके पश्चात् इसकी मांग होने पर भी कोई संस्था ने इसे पुनः प्रकाशित करने पर ध्यान नहीं दे पाई। श्री कुन्दकुन्द स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, देवनगर कॉलोनी, भिण्ड ने इसे पुर्नसम्पादित करके इसके प्रकाशन का निर्णय किया। अतः प्रथम संस्करण में संकलित प्रायः सभी सामग्री के साथ-साथ माननीय बाल ब्र. रवीन्द्र कुमार जी की रचनाओं को भी शामिल किया गया है। जब सैंकड़ों रचनायें उपलब्ध है। तब उनमें चुनाव करना बहुत मुश्किल काम है। सभी रचनाओं को सम्मिलित करने में पुस्तक का आकार बहुत बड़ा हो जाने से वह कृति मात्र मन्दिरों और पुस्तकालयों में संग्रहणीय हो जाती है, परन्तु जन साधारण उसका लाभ नहीं ले पाता। अत: अधिकतम प्रेरक रचनाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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