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छहढाला
[२९१ सकल द्रव्य के गुन अनन्त, परजाय अनन्ता। जानै एकै काल प्रगट, केवलि भगवन्ता ॥ ज्ञान समान न आन, जगत में सुख को कारण। इह परमामृत जन्म-जरा-मृतु रोग निवारण ॥४॥ कोटि जन्म तप तपैं, ज्ञान बिन कर्म झरे जे। ज्ञानी के छिन माहि, त्रिगुप्ति नै सहज टरै ते॥ मुनिव्रत धार अनन्त बार, ग्रीवक उपजायौ। पै निज आतम ज्ञान बिना, सुख लेश न पायौ ॥५॥ तातें जिनवर कथित, तत्त्व अभ्यास करीजै। संशय विभ्रम मोह त्याग, आपौ लख लीजै। यह मानुष पर्याय, सुकुल सुनिबौ जिनवानी। इह विधि गये न मिलैं, सुमणि ज्यों उदधि समानी ॥६॥ धन समाज गज बाज, राज तो काज न आवै। ज्ञान आपको रूप भये, फिर अचल रहावै॥ तास ज्ञान को कारण, स्व-पर विवेक बखानो। कोटि उपाय बनाय, भव्य ताको उर आनो ॥७॥ जे पूरब शिव गये, जाहिं अरु आगे जैहैं। सो सब महिमा ज्ञानतनी, मुनिनाथ कहे हैं। विषय चाह दव दाह, जगत जन अरनि दझावै। तास उपाय न आन, ज्ञान घनघान बुझावै ॥८॥ पुण्य-पाप फलमाहिं, हरख बिलखौ मत भाई। यह पुद्गल परजाय, उपजि विनसै फिर थाई॥ लाख बात की बात, यहै निश्चय उर लाओ। तोरि सकल जग दन्द-फन्द, निज आतम ध्याओ॥९॥ सम्यग्ज्ञानी होय बहुरि, दृढ़ चारित लीजै। एकदेश अरु सकलदेश, तसु भेद कहीजै। त्रसहिंसा को त्याग, वृथा थावर न संहारै।
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