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समाधिमरण पाठ ]
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अरु समता निज उर में आवै, भाव अधीरज जावै । यों निशदिन जो उन मुनिवर को, ध्यान हियेविच लावै ॥ ३० ॥ धन्य-धन्य सुकुमाल महामुनि, कैसे धीरज धारी । एक श्यालनी जुग बच्चाजुत पाँव भख्यो दुखकारी ॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥३१ ॥ धन्य-धन्य जु सुकौशल स्वामी, व्याघ्री ने तन खायो । तो भी श्रीमुनि नेक डिग नहिं, आतम सों हित लायो ॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥३२॥ देखो गजमुनि के शिर ऊपर, विप्र अगनि बहु बारी । शीश जलै जिम लकड़ी तिनकौ, तो भी नाहिं चिगारी ॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ॥३३॥ सनतकुमार मुनी के तन में, कुष्ट वेदना व्यापी। छिन्न-भिन्न तन तासों हूवो, तब चिंत्यो गुण आपी ॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥३४॥ श्रेणिक सुत गंगा में डूब्यो, तब जिननाम चितास्यो । धर सलेखना परिग्रह छोड्यो, शुद्ध भाव उर धारयो ॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥ ३५ ॥ समन्तभद्र मुनिवर के तन में, क्षुधा वेदना आई । तो दुख में मुनि नेक न डिगियो, चिंत्यौ निजगुण भाई ॥
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