________________
स्वयंभू स्तोत्र भाषा ]
[१४९ परम समाधि-स्वरूप जिनेश, ज्ञानी ध्यानी हित-उपदेश । कर्म नाशि शिव सुख विलसन्त, वन्दौंविमलनाथ भगवन्त ॥13॥ अन्तर बाहिर परिग्रह टारि, परम दिगम्बर-व्रत को धारि। सर्व जीव-हित राह दिखाय, नमौं अनन्त वचन-मन लाय॥१४॥ सात तत्व पंचासतिकाय, अरथ नवों छः दरब बहु भाय। लोक अलोक सकल परकाश, वन्दौं धर्मनाथ अविनाश ॥१५॥ पंचम चक्रवर्ति निधिभोग, कामदेव द्वादशम मनोग। शान्तिकरन सोलम जिनराय, शान्तिनाथ वन्दौं हरषाय ॥१६॥ बहु थुति करै हरष नहिं होय, निन्दे दोष गहैं नहिं कोय। शीलवान परब्रह्मस्वरूप, वन्दौं कुन्थुनाथ शिवभूप ॥१७॥ द्वादश गण पूर्णं सुखदाय, थुति वन्दना करें अधिकाय। जाकी निज-थुति कबहुँन होय, वन्दौंअर जिनवर-पद दोय ॥१८॥ पर-भव रत्नत्रय-अनुराग, इह-भव ब्याह समय वैराग। बाल-ब्रह्म-पूरन व्रतधार, वन्दौं मल्लिनाथ जिनसार ॥१९॥ बिन उपदेश स्वयं वैराग, थुति लोकान्त करें पग लाग। नमः सिद्ध कहि सब व्रत लेहिं, वन्दौं मुनिसुव्रत व्रत देहिं ॥२०॥ श्रावक विद्यावंत निहार, भगति-भावसों दियो अहार। बरसी रतन-राशि तत्काल, वन्दौं नमिप्रभु दीनदयाल ॥२१॥ सब जीवन की बन्दी छोर, राग-द्वेष द्वै बन्धन तोर । रजमति तजि शिव-तिय सों मिले, नेमिनाथ वन्दौं सुख मिले ॥२२॥ दैत्य कियो उपसर्ग अपार, ध्यान देखि आयो फनिधार। गयो कमठशठ मुख कर श्याम, नमों मेरुसमपारस स्वामि ॥२३॥ भव-सागर तैं जीव अपार, धरम पोत में धरे निहार। डूबत काढ़े दया विचार, वर्द्धमान वन्दौं बहुबार ॥२४॥
(दोहा) चौबीसौं पद-कमल जुग, वन्दौं मन-वच-काय। 'द्यानत' पढ़े सुनै सदा, सो प्रभु क्यों न सहाय॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org