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[१२
स्वयंभू स्तोत्र ]
श्री नेमिनाथ जिन-स्तुति
(छन्द त्रोटक) भगवन् ऋषि ध्यान सु शुक्ल किया,
ईंधन चहु कर्म जलाय दिया। विकसित अम्बुजवत् नेत्र धरे,
हरिवंश-केतु, नहिं जरा धरे ॥१२१ ॥
निर्दोष विनय दम वृष कर्ता,
शुचि ज्ञान किरण जन हित कर्ता। शीलोदधि नेमि अरिष्ट जिनं,
भवनाश लिए प्रभु मुक्त जिनं ॥१२२ ।।
तुम पाद कमल युग निर्मल है,
पदतल-द्वय रक्त-कमल-दल है। नख चन्द्र किरण मण्डल छाया,
अति सुन्दर शिखरांगुलि भाया ॥१२३ ॥
इन्द्रादि मुकुट मणि किरण फिरै,
तब चरण चूम्बकर पुण्य भरै। निज हितकारी पण्डित मुनिगण,
मंत्रोच्चारी प्रणमें भविगण ॥१२४॥
द्युतिमय रविसम रथचक्र किरण,
करती व्यापक जिस अंग धरन। है नील जलद सम तन नीलं,
है केतु गरुड़ जिस कृष्ण हलं॥१२५ ॥
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