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[११९
स्वयंभू स्तोत्र ]
श्री नमिनाथ जिन-स्तुति
(स्रग्विणी छन्द) साधु जब स्तुति करे भाव निर्मल धरे, स्तुति हो वा नहीं, फल करै न करै। इम सुगम मोक्षमग जग स्व-आधीन है, नमिजिनं आप पूजे गुणाधीन है॥११६ ॥
आपने सर्ववित्! आत्मध्यानं किया, कर्म बन्धं जला मोक्षमग कह दिया। आपमें केवलज्ञान पूरण भया, अनमती आप रवि-जुगनु सम हो गया॥११७॥
अस्ति नास्ति उभय वानुभय मिश्र तत्, सप्तभंगीमयं तत् अपेक्षा स्वकृत। त्रियमितं धर्ममय तत्त्व गाया प्रभू, नैक नय की अपेक्षा, जगतगुरु प्रभू ॥११८ ॥
अहिंसा जगत ब्रह्म परमं कही है, जहां अल्प आरंभ वहाँ नहीं रही है। अहिंसा के अर्थ तजा द्वय परिग्रह, दयामय प्रभू वेष छोड़ा उपधिमय ॥११९॥
आपका अंग भूषण वसन से रहित, इंद्रियाँ शांत जग कहत तुम कामजित। उग्र शस्त्र बिना निर्दयी क्रोध जित, आप निर्मोह, शममय, शरण राख नित ॥१२०॥
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