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________________ स्वयंभू स्तोत्र ] श्री मुनिसव्रतनाथ जिन-स्तुति (स्रग्विणी छन्द) साधु - उचित व्रतों में सुनिश्चित थये, कर्म हर तीर्थकर साधु-सुव्रत भये । साधगण की सभा में सुशोभित भये, मोर के कण्ठ सम नील रंग रंग है, काममद जीतकर शान्तिमय अंग है। नाथ ! तेरी तपस्या जनित अंग जो, शोभता चन्द्रमण्डल मई रंग जो ॥११२ ॥ चन्द्र जिम उडुगणों से सुवेष्टित भये ॥ १११ ॥ आपके अंग में शुक्ल ही रक्त था, चन्द्रसम निर्मल रजरहित गन्ध था । आपका शान्तिमय अद्भुतं तन जिनं, Jain Education International जनन व्यय ध्रौव्य लक्षण जगत प्रतिक्षणं, चित अचित आदि से पूर्ण यह हरक्षणं । यह कथन आपका, चिह्न सर्वज्ञ का, है वचन आपका आप्त उत्कृष्ट का॥११४॥ मनवचन का प्रवर्तन परम शुभ गणं ॥ ११३ ॥ आपने अष्ट कर्म कलंक महा, निरूपमं ध्यान बल से सभी है दहा । भवरहित मोक्ष-सुख के धनी हो गये, [ ११७ नाश संसार हो भाव मेरे भये ॥ ११५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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