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वैराग्य पाठ संग्रह
अरे गठरिया पथिक ! उठाले, यहाँ बैठ मत भूल। उस पथ का तू पथिक नहीं है, क्यों चलता प्रतिकूल॥ यहाँ क्यों खड़ा लटकता है, अरे क्यों इधर भटकता है ।।२०।। यहाँ बैठ क्या सोच रहा है, समय नहीं अब देख। आयु दिवाकर पार कर रहा, अस्ताचल की रेख॥ अभी तो सूर्य चमकता है, अरे क्यों इधर भटकता है ॥२१॥ तेरा पथ कुछ दूर नहीं है, इसमें है इक भूल। दृष्टि बदल इस पथ से फिर हो, उस पथ के अनुकूल ॥ इधर क्यों व्यर्थ लपकता है ? अरे क्यों इधर भटकता है।।२२।। मोह वारुणी पीकर मूरख, सत्पथ दिया भुलाय। शिवनगरी का तू पथतज कर, इधर भटकता आय॥ हुई क्यों नहीं विरकता है ? अरे क्यों इधर भटकता है।।२३।। इसप्रकार सन्देश-श्रवण कर, पथिक गया घबराय। मुक्ति मार्ग से च्युत होकर मैं, इस पथ पहुँचा आय। श्रवण अब पड़ी भनकता है, अरे क्यों इधर भटकता है।।२४।। हाथ जोड़कर पथिक कहे, गुरु किया महा-उपकार। इस नगरी के विषम मार्ग से, मुझको वेग निकार॥ मार्ग यह बहुत कसकता है, अरे क्यों इधर भटकता है।।२५।। हो प्रसन्न गुरुदेव दयानिधि, दीना मार्ग बताय। शिवनगरी में पहुँच पथिक वह, बना चिदानन्दराय।।
चरण 'छोटे' नित नमता है, अरे क्यों इधर भटकता है ॥२६॥ ___ अज्ञानी सिर्फ शास्त्र को पढ़ते हैं, परन्तु विवेकीशास्त्र
के माध्यम से अपने को पढ़ते हैं। ___ अन्याय के विषय और अभक्ष्य-भक्षण से धर्मध्यान में मन नहीं लगता।
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