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वैराग्य पाठ संग्रह
सहज तत्त्व की सहज भावना, ही आनन्द प्रदाता है।
जो भावे निश्चय शिव पावे, आवागमन मिटाता है।। सहजतत्त्व ही सहज ध्येय है, सहजरूप नित ध्यान धरो॥७॥ व्यग्र.॥
उत्तम जिन वचनामृत पाया, अनुभव कर स्वीकार करो।
पुरुषार्थी हो स्वाश्रय से इन, विषयों का परिहार करो। ब्रह्मभावमय मंगल चर्या, हो निज में ही मग्न रहो ॥८॥ व्यग्र.।।
ब्रह्मचर्य द्वादशी ब्रह्मचर्य की अद्भुत महिमा, आज बताऊँ भली-भली। ब्रह्मचर्य बिन जीवन निष्फल, बात कहूँ मैं खरी-खरी ।।टेक।। निज सुख शान्ति निज में ही है, बाहर कहीं न पाओगे। व्यर्थ भ्रमे हो और भ्रमोगे, समय चूक पछताओगे। भोगों में तो फँस कर भाई, तुमने भारी विपद भरी ब्रह्म.॥१॥ जैसे बड़ी-बड़ी नदियों पर, बाँध बँधे देखे होंगे। सोचो बाँध टूट जावे तो, क्यों नहीं नगर नष्ट होंगे। ब्रह्मचर्य का बाँध टूटने से, बरबादी घड़ी-घड़ी॥ब्रह्म.॥२॥ भोगों का घेरा ऐसा है, बाहर वाले ललचावें। फँसने वाले भी पछतावें, सुख नहीं कोई पावें।। धोखे में आवे नहीं ज्ञानी, शुद्धातम की प्रीति धरी ॥ब्रह्म.॥३।। पहले तो मिलना ही दुर्लभ, मिल जावें तो भोग कठिन। भोगों से तृष्णा ही बढ़ती, इनसे होना तृप्ति कठिन ।। पाप कमावे धर्म गमावे, घूमे भव की गली-गली।ब्रह्म.।।४।। बत्ती तेल प्रकाश नाश ज्यों, दीपक धुआँ उगलता है। रत्नत्रय को नाश मूढ, भोगों में फँसकर हँसता है।। सन्निपात का ही यह हँसना, सन्मुख जिसके मौत खड़ी ।।ब्रह्म.।।५।।
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