________________
दो शब्द कल का दिन किसने देखा, आज का दिन हम खोवें क्यों ? जिन घडियों में हँस सकते हैं, उन घडियों में रोवें क्यों ? __ स्वाध्याय के बिना सुखी होना तो दूर, सुखी होने का सही उपाय भी समझ में नहीं आता। भक्ति में आत्म निवेदन की प्रधानता है, परन्तु भगवान के द्वारा बताया धर्मतीर्थ प्राप्त करने का प्रथम सोपान स्वाध्याय ही है। जैसे भौतिक शरीर के लिए भोजन आवश्यक है वैसे ही आत्मार्थ साधने के लिए स्वाध्याय। अतः प्रत्येक जीव का कर्तव्य है कि निज-लक्ष्य पूर्वक निरन्तर स्वाध्याय अवश्य करे।
पाठ करना, याद करना भी आम्नाय नामक स्वाध्याय ही है। आँखें और कान पराधीन हैं। शास्त्र पढ़ना या सुनना हर समय सम्भव नहीं है। अत: पाठों
को याद करके इनके माध्यम से तत्त्वाभ्यास करें और अपने उपयोग को निर्मल रखने का सतत् प्रयत्न करते रहें। इसी उद्देश्य से आध्यात्मिक ज्ञान व वैराग्य गर्भित पाठों का यह लघु संस्करण प्रकाशित करते हुए यही भावना है कि हम सभी इसका अधिकाधिक सदुपयोग करते हुए सुख-शान्ति के मार्ग में अग्रसर होवें।
बाल ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्' द्वारा वैराग्य एवं तत्त्वज्ञान वर्धक अनेकों आध्यात्मिक पाठ की अनुपम रचनाएँ आत्मार्थी जीवों को प्रतिदिन प्रतिसमय स्मरण करने योग्य हैं। भव्यजीवों को प्रतिदिन पाठ करने में सुविधा रहे तथा पाठ के माध्यम से वे अपने परिणामों को विशुद्ध बनायें और जन्म-मरण का अभाव कर सुखी हों- इस भावना से यह लघु संकलन प्रस्तुत है। सभी भव्यात्मायें इसका पवित्र हृदय से लाभ लें - यही भावना है। – सुरेशचंद पिपरावाले, मंत्री
प्रस्तुत संस्करण में कीमत कम करने वालों की साभार नामावलि ११००१/- डॉ. बासन्ती बेन शाह, प्रमुख श्री दिगम्बर जैन मुक्ति मण्डल मुम्बई। १५०१/- श्रीमती स्वाति जैन ह. श्री आशीष जैन बाँसवाड़ा। ११०१/- श्रीमती जयन्ती जैन दालमिल, ११०१/- श्रीमती कमला जैन गुरसौरा। ५०१ रुपये देनेवाले - सर्व सौ. सरोज जैन पिपरा, शीला पंकज, शीला दलीपुर, शीला विलगांय, माया जैन, मीना गुढ़ा, श्रद्धा वैद्य, सितारा वैद्य, मीरा मालपीठा, दर्शना सिंघई, कुसुम प्रतिभा प्रेस, रजनी वैसाखिया, राजकुमारी लोंडुआ, राजकुमारी जनता, करुणा ठगन, कु. प्रज्ञा जैन ककडारी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org