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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह चपल इन्द्रियों पर जय पाकर तृप्ति पाऊँ। निजानन्द रस आस्वादी हो क्षुधा मिटाऊँ।
सहज तृप्त निर्वांछक हो पूजू अविकारी ॥ऋषभादिक.।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो क्षुधारोग विनाशनाय नैवैद्यं निर्व. स्वाहा।
जिनवाणी सुन भेदज्ञान कर मोह तनूँ मैं। अन्तर्मुख हो परमभाव निज सहज लखू मैं ।।
निर्मोही हो पूजूं ध्याऊँ हे अविकारी ।।ऋषभादिक.॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्व. स्वाहा।
द्रव्य भाव नो कर्मों से शुद्धातम न्यारा। अहो आपकी साक्षी में प्रत्यक्ष निहारा ॥
कर्म कलंक नशाऊँ पूजू हे अविकारी ॥ऋषभादिक.॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
हो निरीह निज से ही निज में शिवफल पाया। नित्य मुक्त आतम परमातम सम दर्शाया ।
ध्याऊँ आत्म स्वरूप सहज पूनँ अविकारी ।।ऋषभादिक.।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अरे! धूल सम जग वैभव क्षण में ठुकराया। अन्तर्मग्न हुए अनर्घ्य निज वैभव पाया।
जनँ अर्घ्य ले शुद्ध भावमय हे अविकारी ॥ऋषभादिक.॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो अनर्घ्यपद प्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
(दोहा) सहज भाव से पूजकर, गाऊँ शुभ जयमाल। ध्याऊँ ध्येय स्वरूप निज, कटे कर्म जंजाल ।
__ (भुजंगप्रयात, तर्ज-मैं हूँ पूर्ण ज्ञायक...) ऋषभनाथ पूनँ महासुक्खकारी, अजितनाथ वन्दूँ करम रिपु संहारी। सम्भव जिनेश्वर जणूं शम प्रदाता, नमूं नाथ अभिनन्दनं शिव विधाता ।।
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