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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
जयमाला
(दोहा) कामादिक रिपु जीतकर, रहें सदा निर्द्वन्द। तिनके गुण चिन्तत कटें, सहज कर्म के फन्द।।
(चौपाई) मुनिगुण गावत चित हुलसाय, जनम-जनम के क्लेश नशाय । शुद्ध उपयोग धर्म अवधार, होय विरागी परिग्रह डार ।। तीन कषाय चौकड़ी नाश, निग्रंथ रूप सु कियो प्रकाश। अन्तर आतम अनुभव लीन, पाप परिणति हुई प्रक्षीण ॥ पंच महाव्रत सोहें सार, पंच समिति निज-पर हितकार। त्रय गुप्ति हैं मंगलकार, संयम पालें बिन अतिचार ।। पंचेन्द्रिय अरु मन वश करे, षट् आवश्यक पालें खरे। नग्नरूप स्नान सु त्याग, केशलौंच करते तज राग। एकबार लें खड़े अहार, तजें दन्त धोवन अघकार । भूमि माँहिं कछु शयन सु करें, निद्रा में भी जाग्रत रहें। द्वादश तप दश धर्म सम्हार, निज स्वरूप साधे अविकार। नहीं भ्रमावे निज उपयोग, धारें निश्चल आतम योग ।। क्रोध नहीं उपसर्गों माँहि, मान न चक्री शीश नवाहिं । माया शून्य सरल परिणाम, निर्लोभी वृत्ति निष्काम ।। सबके उपकारी वर वीर, आपद माँहिं बंधावें धीर । आत्मधर्म का दें उपदेश, नाशें सर्व जगत के क्लेश ॥ जग की नश्वरता दर्शाय, भेदज्ञान की कला बताय। ज्ञायक की महिमा दिखलाय, भव बन्धन से लेंय छुड़ाय॥ परम जितेन्द्रिय मंगल रूप, लोकोत्तम है साधु स्वरूप। अनन्य शरण भव्यों को आप, मेटें चाह दाह भव ताप ।।
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