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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
अहो! 'चित्' परम अकर्तानाथ, अरे! वह निष्क्रिय तत्त्व विशेष । अपरिमित अक्षय वैभवकोष, सभी ज्ञानी का यह परिवेश॥ बताये मर्म अरे ! यह कौन ? तुम्हारे बिन वैदेही नाथ । विधाता शिव-पथ के तुम एक, पड़ा मैं तस्कर दल के हाथ ॥ किया तुमने जीवन का शिल्प, खिरे सब मोह, कर्म और गात। तुम्हारा पौरुष झंझावात, झड़ गये पीले-पीले पात ॥ नहीं प्रज्ञा-आवर्तन शेष, हुए सब आवागमन अशेष । अरे प्रभु ! चिर-समाधि में लीन, एक में बसते आप अनेक ॥ तुम्हारा चित्-प्रकाश कैवल्य, कहैं तुम ज्ञायक लोकालोक। अहो ! बस ज्ञान जहाँ हो लीन, वही है ज्ञेय, वही है भोग। योग-चांचल्य हुआ अवरुद्ध, सकल चैतन्य निकल निष्कंप । अरे ! ओ योग रहित योगीश ! रहो यों काल अनन्तानन्त ॥ जीव कारण-परमात्म त्रिकाल, वही है अन्तस्तत्व अखंड। तुम्हें प्रभु ! रहा वही अवलम्ब, कार्य परमात्म हुए निर्बन्ध ।। अहो ! निखरा कांचन चैतन्य, खिले सब आठों कमल पुनीत। अतीन्द्रिय सौख्य चिरंतन भोग, करो तुम धवल महल के बीच ॥ उछलता मेरा पौरुष आज, त्वरित टूटेंगे बंधन नाथ।
अरे ! तेरी सुख-शय्या बीच, होगा मेरा प्रथम प्रभात ॥ प्रभो ! बीती विभावरी आज, हुआ अरुणोदय शीतल छाँव।
झूमते शांति-लता के कुंज, चलें प्रभु ! अब अपने उस गाँव ॥ ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनापद-प्राप्तये जयमालाऽयं.
चिर-विलास चिद्ब्रह्म में, चिर-निमग्न भगवंत । द्रव्य-भाव स्तुति से प्रभो ! वंदन तुम्हें अनन्त ॥
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
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