SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 198 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह अज्ञान से ही बंध, सम्यग्ज्ञान से ही मुक्ति है। ज्ञानमय संसाधना, दुख नाशने की युक्ति है। जो विराधक ज्ञान का, सो डूबता मंझधार है। ज्ञान का आश्रय करे, सो होय भव से पार है।॥८॥ यों जान महिमाज्ञान की, निजज्ञान को स्वीकार कर। ज्ञान के अतिरिक्त सब, परभाव का परिहार कर। निजभाव से ही ज्ञानमय हो, परम-आनन्दित रहो। होय तन्मय ज्ञान में, अब शीघ्र शिव-पदवी धरो॥९॥ कर्त्तव्याष्टक आतम हित ही करने योग्य, वीतराग प्रभु भजने योग्य। सिद्ध स्वरूप ही ध्याने योग्य, गुरु निर्ग्रन्थ ही वंदन योग्य ॥१॥ साधर्मी ही संगति योग्य, ज्ञानी साधक सेवा योग्य । जिनवाणी ही पढ़ने योग्य, सुनने योग्य समझने योग्य ।।२।। तत्त्व प्रयोजन निर्णय योग्य, भेद-ज्ञान ही चिन्तन योग्य। सब व्यवहार हैं जानन योग्य, परमारथ प्रगटावन योग्य ॥३॥ वस्तुस्वरूप विचारन योग्य, निज वैभव अवलोकन योग्य। चित्स्वरूप ही अनुभव योग्य, निजानंद ही वेदन योग्य ॥४॥ अध्यातम ही समझने योग्य, शुद्धातम ही रमने योग्य । धर्म अहिंसा धारण योग्य, दुर्विकल्प सब तजने योग्य ॥५॥ श्री जिनधर्म प्रभावन योग्य, ध्रुव आतम ही भावन योग्य । सकल परीषह सहने योग्य, सर्व कर्म मल दहने योग्य ॥६॥ भव का भ्रमण मिटाने योग्य, क्षपक श्रेणी चढ़ जाने योग्य । तजो अयोग्य करो अब योग्य, मुक्तिदशा प्रगटाने योग्य ॥७॥ आया अवसर सबविधि योग्य, निमित्त अनेक मिले हैं योग्य। हो पुरुषार्थ तुम्हारा योग्य, सिद्धि सहज ही होवे योग्य ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy