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भक्ति कर जिनदेव यही भावना भाऊँ, प्रभो ! आप सम होय अपनी प्रभुता पाऊँ । तवपद मम उरमाँहिं, मम उर तुम चरणन में, तब लौं लीन रहाय, थिरता होवे निज में || (छन्द-घत्ता)
श्री धर्म जिनेश्वर हे परमेश्वर, जजत मुनीश्वर सुखकारी ।
भी प्रभु ध्याऊँ, कर्म नशाऊँ शिवपद पाऊँ अविकारी ॥
ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(दोहा) पूजत धर्म जिनेश को, सर्व क्लेश विनशाय । अक्षय निज सम्पत्ति मिले, सिद्ध स्वपद प्रगटाय ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
श्री शान्तिनाथ जिनपूजन (गीतिका)
चक्रवर्ती पाँचवें अरु कामदेव सु बारहवें । इन्द्रादि से पूजित हुए, तीर्थेश जिनवर सोलहवें ॥ तिहुँलोक में कल्याणमय, निर्ग्रन्थ मारग आपका। बहुमान से पूजन निमित्त, स्वरूप चिन्तें आपका ॥ (सोरठा) चरणों शीस नवाय, भक्तिभाव से पूजते ।
प्रासुक द्रव्य सुहाय, उपजे परमानन्द प्रभु ॥
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम् ।
प्रभु
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
(बसन्ततिलका)
के
प्रसाद अपना ध्रुवरूप जाना,
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जन्मादि दोष नाशें हो आत्मध्याना ।
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