SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 151 भक्ति कर जिनदेव यही भावना भाऊँ, प्रभो ! आप सम होय अपनी प्रभुता पाऊँ । तवपद मम उरमाँहिं, मम उर तुम चरणन में, तब लौं लीन रहाय, थिरता होवे निज में || (छन्द-घत्ता) श्री धर्म जिनेश्वर हे परमेश्वर, जजत मुनीश्वर सुखकारी । भी प्रभु ध्याऊँ, कर्म नशाऊँ शिवपद पाऊँ अविकारी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (दोहा) पूजत धर्म जिनेश को, सर्व क्लेश विनशाय । अक्षय निज सम्पत्ति मिले, सिद्ध स्वपद प्रगटाय ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह श्री शान्तिनाथ जिनपूजन (गीतिका) चक्रवर्ती पाँचवें अरु कामदेव सु बारहवें । इन्द्रादि से पूजित हुए, तीर्थेश जिनवर सोलहवें ॥ तिहुँलोक में कल्याणमय, निर्ग्रन्थ मारग आपका। बहुमान से पूजन निमित्त, स्वरूप चिन्तें आपका ॥ (सोरठा) चरणों शीस नवाय, भक्तिभाव से पूजते । प्रासुक द्रव्य सुहाय, उपजे परमानन्द प्रभु ॥ ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम् । प्रभु ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (बसन्ततिलका) के प्रसाद अपना ध्रुवरूप जाना, Jain Education International जन्मादि दोष नाशें हो आत्मध्याना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy