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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह पंचकल्याणक अर्घ्य
(रोला) गर्भागम जिनराज आपका मंगलकारी, पन्द्रह माह रत्नवर्षा होवे सुखकारी। अष्टम सित वैशाख गर्भ कल्याण मनाया,
पूजत तुम्हें जिनेश महा आनन्द उपजाया ।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लाष्टम्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
माघ शुक्ल तेरस के दिन जन्मे अविकारी, मेरु शिखर अभिषेक और उत्सव सुखकारी। इन्द्रादिक ने किये, भक्ति कर मैं हर्षाऊँ,
जनम-मरण की सन्तति नाशे यह वर पाऊँ॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
उल्कापात निहार विरागी हुए जिनेश्वर, हुए माघ सित तेरस को निग्रंथ मुनीश्वर। धन्यसेन नृप धन्य प्रथम आहार कराया,
हुए पंच-आश्चर्य हर्ष जन-जन में छाया ॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
लगभग एक वर्ष मुनिपद में निजपद भाया, रत्नपुरी दीक्षावन आकर ध्यान लगाया। पौष शुक्ल पूनम दिन घाति कर्म नशाये,
समवशरण अरु अतिशय अन्य सहज प्रगटाये। ॐ ह्रीं पौषशुक्लपूर्णिमायां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
श्री सम्मेदशिखर पर कर्म कलंक निवारे, प्रभो चतुर्थी जेठ सुदी निर्वाण पधारे। मुक्त स्वरूप विचार आपकी पूज रचाऊँ,
सम्यक् आराधन द्वारा निर्वाण सुपाऊँ। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लचतुर्थ्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
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