SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जयमाला सोरठा- अनन्तनाथ भगवान, जयवन्तो मम हृदय में। करूँ प्रभो ! गुण गान, भावविशुद्धि के लिए ।। (छन्द-पद्धरि) भव भ्रमण मूल मिथ्यात्व नाश, पाया प्रभुवर आतम प्रकाश। जग विभव-विभाव असार त्याग, निग्रंथ मार्ग में चित्त पाग॥ साधा जिनवर शुद्धोपयोग, मुनि मुद्रा मन मोहे मनोग । प्रभु मौन निजानन्द लीन हुए, निर्द्वन्द सहज स्वाधीन हुए। बिन काम दाह नहीं अक्ष भोग, नहीं राग द्वेष नहीं रोग शोक। पर परिणति सों अत्यन्त भिन्न, निज रस में तृप्त रहें अखिन्न॥ धरि ध्यान क्षपकश्रेणी चढ़ाय, प्रभु घातिकर्म सहजहिं नशाय । तब केवलज्ञान हुआ सुखकर, किय समवशरण धनपति आकर॥ भवि भागन वश खिरी दिव्यध्वनि, हरषे सब ज्ञानी और मुनि । शुद्धात्म तत्त्व ही कहा सार, ध्रुव एक शुद्ध वर्जित विकार ।। हम अनुभव करि कीना प्रमान, पाया प्रभुवर सत्यार्थ ज्ञान। जीते रागादिक सकल क्लेश, आरम्भ परिग्रह तजि अशेष ।। धारें निग्रंथ स्वरूप देव, यह भाव भयो स्वामी स्वयमेव । वृद्धिंगत हो पुरुषार्थ नाथ, पामरता का होवे विनाश ।। जग में तुम ही हो सत्य शरण, प्रभु परम हितैषी मोह हरण। हो परम धरम आराध्य सार, निज सम करि कारण दुर्निवार ।। प्रभु पद वन्दूँ मैं बार-बार, अविकारी आनन्दरूप धार। तुम चरण प्रसाद लहूँ अनन्त, अपनी अक्षय प्रभुता महन्त ॥ ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालायँ निर्वपामीति स्वाहा। दोहा- अहो अनन्त जिनेश को, नित पूजें मनलाय । इन्द्रादिक से पूज्य हो, निश्चय शिवपद पाय॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy