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________________ 113 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री सुमतिनाथ जिनपूजन (गीतिका) देवेन्द्र और नरेन्द्र चरणों में सदा सिर नावते। हर्षावते गुण गावते निज भव भ्रमण विनशावते ॥ उन सुमति जिन की अर्चना को मम हृदय उमगावता। असमर्थ हूँ अल्पज्ञ हूँ फिर भी प्रभो! गुण गावता ।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। सुमति जिन पूजों हरषाई। कुमति विनाशक, सुमति प्रकाशक पूजों हरषाई ॥टेक । भूल स्वयं को भव-भव भटक्यो, महाक्लेश पाई। जन्म मरण नाशन को पूजों, जल से सुखदाई ।।सुमति.।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं नि. स्वाहा। ‘भव आताप निवारण को, चन्दन से अधिकाई। प्रभु के चरण जजों अविनाशी शीतलता दाई ।सुमति.॥ ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि. स्वाहा । ध्रुव के आश्रय से हे जिनवर ! ध्रुवगति प्रगटाई। भक्तिभाव अक्षत सों पूजों, अक्षय पद दाई ।।सुमति.।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा। पुण्योदय के सकल भोग, बिन भोगे खिर जाई। कामवासना ब्रह्मचर्य के बल से विनशाई ।।सुमति.।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा। भोजन सकल असार दिखे हे परम तृप्ति दाई। अमृत झरे अहो अन्तर में, क्षुधा न उपजाई ।समुति.।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा। सूर्य-चन्द्र भी हर न सकें, जिस तम को जिनराई। ज्ञानज्योति ताके नाशन को, प्रभुवर प्रगटाई ।।सुमति.। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं नि. स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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