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आध्यात्मिक पूजन - विधान संग्रह
जिनरूप लख मैंने लखा, शीतल स्वभाव सु आपका । चन्दन चढ़ा निजपद भजूँ कारण नशे भवताप का ॥ नाथ अभिनन्दन प्रभू की, करूँ पूजा भक्ति से । पाऊँ विशुद्धि परम जिनवर सम, स्वयं की शक्ति से ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि. स्वाहा । अक्षय जिनेश्वर पद निरख, इन्द्रादि पद दुखमय लगे ।
निज-भावमय अक्षत चढ़ाऊँ, भाग्य मेरे हैं जगे ॥नाथ. ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा । जिनराज गुणमय सुमन माला, कंठ में धारण करूँ । निष्काम परम सुशील पाऊँ, भाव अब्रह्म परिहरूं ॥ नाथ ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा । स्वानुभवमय सरस चरू यह, आप ढिंग पाया प्रभो । तृप्त हुई ऐसी कि काल अनन्त तृप्त रहूँ विभो ॥नाथ. ॥ ॐ ह्रीं श्री अजितनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा । निज ज्ञान- दीप प्रकाश से, आलोकमय मेरा सदन । झलके स लोकालोक ऐसा, ज्ञान केवल लहूँ जिन ॥नाथ. ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं नि. यह देह धूपायन बनाकर, ध्यान की अग्नि जला । भस्म कर्मों को करूँ, जिनधर्म है तुझको मिला ॥नाथ. ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. स्वाहा । नहीं शेष कुछ वाँछा रही, पूजा सफल मेरी हुई।
स्वाहा ।
निश्चय मिले मुक्ति सुफल, जब दृष्टि है सम्यक् हुई । नाथ. ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । क्या मूल्य है जड़ अर्घ्य का, पाया अनर्घ्य निजात्मा ।
अर्घ्य उत्तम प्रभु चढ़ाऊँ, मुदित हो परमात्मा ॥नाथ. ।। ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा ।
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