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क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
उत्तर :- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का परस्पर सुमेल होना व्यवस्थित है, और सुमेल न होना अव्यवस्थित है। जैसे - किसी विद्यार्थी के कमरे में, कपड़े हेंगर पर टंगे हों, पुस्तकें अलमारी में हों तथा अन्य सभी वस्तुएँ यथा-स्थान हों तो उसका कमरा व्यवस्थित कहा जाएगा, और यदि पुस्तकें पलंग पर हों, कपड़े कुर्सी पर टंगे हों, अन्य वस्तुएँ भी यहाँ वहाँ बिखरी पड़ी हों, तो उसका कमरा अव्यवस्थित कहा जाएगा ।
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इसीप्रकार पढ़ने के समय खेलना, खेलने के समय पढ़ना, पूजन के समय स्वाध्याय तथा स्वाध्याय के समय पूजन आदि कार्य अव्यवस्थित कहे जायेंगे। निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि सभी काम उचित समय पर उचित व्यक्ति के द्वारा उचित स्थान पर उचित विधि से करना व्यवस्थित कहा जाएगा और इससे विपरीत होने पर अव्यवस्थित कहा जाएगा ।
प्रश्न 4. क्रमबद्धपर्याय की चर्चा करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
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उत्तर :- प्रत्येक वस्तु सत् अर्थात् उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यरूप है। अतः परिणमन करना वस्तु का सहज स्वभाव है। वस्तु में प्रतिसमय नई-नई पर्यायें उत्पन्न होती हैं, पूर्व पर्यायों का व्यय होता है, तथा इस प्रक्रिया में वस्तु शाश्वत ध्रुवरूप रहती है।
उपर्युक्त परिणमन-स्वभाव के सन्दर्भ में यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि वस्तु कब, किस रूप में परिणमित होगी - इसका कोई सुनिश्चित नियम है या हम जब जैसा चाहें वैसा परिणमन कर सकते हैं? इसी प्रश्न का उत्तर क्रमबद्धपर्याय के सिद्धान्त के माध्यम से दिया जाता है।
प्रश्न 5. वस्तु के परिणमन की प्रमुख विशेषतायें बताइये ?
उत्तर :- प्रत्येक पदार्थ का परिणमन, क्रमशः, नियमित, व्यवस्थित और स्वाधीन होता है। इन विशेषताओं का संक्षिप्त भाव नियमानुसार है:
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1. क्रमश :- एक के बाद एक अर्थात् प्रत्येक गुण की त्रिकालवर्ती पर्यायें अपने-अपने स्वकाल में एक के बाद एक होती है ।
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