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________________ 119 क्रमबद्धपर्याय : प्रासंगिक प्रश्नोत्तर अनेकान्तरूप मानने पर कथञ्चित् एकान्त अर्थात् सम्यक्-एकान्त का निषेध होने से मिथ्या-एकान्त हो जाता है। अतः अनेकान्त के साथ सम्यक्-एकान्त भी स्वीकार करने पर सम्यक्-अनेकान्त होता है। इसप्रकार वस्तु को कथञ्चित्अनेकान्त और कथञ्चित्-एकान्तरूप स्वीकार करना ही अनेकान्त में अनेकान्त है। आचार्य समन्तभद्र ने स्वयंभूस्तोत्र में अरनाथ भगवान की स्तुति करते हुए कारिका क्रमांक 103 में यही भाव व्यक्त किया है। अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाण नय साधनः। ___ अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तेऽर्पितान्नयात्।। प्रमाण और नय हैं साधन जिसके, ऐसा अनेकान्त भी अनेकान्त स्वरूप है; क्योंकि सर्वांशग्राही प्रमाण की अपेक्षा वस्तु अनेकान्तस्वरूप एवं अंशग्राही नय की अपेक्षा वस्तु एकान्तरूप सिद्ध है। __किसी वृक्ष में शाखा, पुष्प, फल आदि अंगों का अस्तित्व भिन्न-भिन्न है, अतः वे सम्यक् -एकान्तरूप हैं। उनके समुदायरूप वृक्ष सम्यक्-अनेकान्तरूप है यदिशाखा आदि सम्यक्-एकान्तों का सर्वथा निषेध किया जाए तोअनेकान्तरूपी वृक्ष का भी निषेध हो जाएगा। अतः सम्यक्-एकान्त सहित अनेकान्त ही सम्यक्अनेकान्त है। यदि सर्वथा एकान्त अर्थात् मात्र शाखा को ही स्वीकार किया जाए तो जड़ आदि अन्य अंगों का निषेध होने पर शाखा तथा वृक्ष का भी लोप हो जाएगा। अतः जड़, शाखा, पुष्प आदि सभी अंगों तथा उनके समुदायरूप अंगों का समूह ही वृक्ष है। इसीप्रकार गुण-पर्यायरूप अंश तथा उन्हें धारण करने वाले अंशी को मिलाकर ही वस्तु का स्वरूप परिपूर्ण होता है। प्रश्न 11. एकान्त और अनेकान्त के भेद बताते हुए उनकी परिभाषा लिखिए? उत्तर :- एकान्त और अनेकान्त दोनों के मिथ्या और सम्यक् से भेद दो-दो भेद होते हैं। सम्यक् एकान्त :- नय सम्यक् एकान्तरूप हैं, अन्य धर्मों को गौण करते हुए किसी एक धर्म को मुख्य करके वस्तु को देखना सम्यक्-एकान्त है। जैसेवस्तु कथञ्चित् नित्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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