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मङ्गलाचरण (क्रमबद्धपर्याय)
(दोहा) क्रमनियमित क्रमबद्ध है, जग की सब पर्याय। निर्णय हो सर्वज्ञ का, दृष्टि निज में आय॥
(वीरछन्द) सकल द्रव्य के गुण अरु पर्यायों को जाने केवलज्ञान। मानो उसमें डूब गये हों किन्तु न छूता उन्हें सुजान। जब जिसका जिसमें जिसथल में जिस विधिसे होनाजोकार्य। तब उसका उसमें उस थल में उस विधि से होता वह कार्य।
जन्म-मरण हो या सुख-दुःख हो अथवा हो संयोग-वियोग। जैसे जाने हैं जिनवर ने वैसे ही सब होने योग्य ॥ कोई न उनका कर्ता-हर्ता उनका होना वस्तु स्वभाव। ज्ञान-कला में ज्ञेय झलकते किन्तु नहीं उसमें परभाव।
अतः नहीं मैं पर का कर्ता और न पर में मेरा कार्य। सहज, स्वयं, निज क्रम से होती है मुझमें मेरी पर्याय॥ पर्यायों से दृष्टि पलटती भासित हो ज्ञायक भगवान। वस्तु स्वरूप बताया तुमने शत-शत वन्दन गुरु कहान॥
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