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________________ 107 क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर कैसे जलेगी? भगवान की बात का भरोसा नहीं करनेवालों के द्वारा अनेक प्रयत्न करने पर भी सब-कुछ वैसा ही हुआ, जैसा भगवान ने कहा था। __(2) भगवान आदिनाथ ने भी भगवान महावीर के जीव मारीचि के सम्बन्ध में सब कुछ एककोडा-कोडी सागर पहले ही बता दिया था, कि वह इस अवसर्पिणी काल का चौबीसवाँ तीर्थंकर होगा। (3) आचार्य भद्रबाहु ने निमित्त-ज्ञान के आधार पर ही यह बता दिया था कि उत्तर भारत में 12 वर्ष तक अकाल रहेगा-यह घोषणा भी पूर्णतः सत्य हुई थी। (4) सम्राट चन्द्रगुप्त के स्वप्नों के आधार पर भविष्य की घोषणायें की गई थीं, जो वैसी ही घटित हुई। प्रश्न 23. करणानुयोग के आधार पर क्रमबद्धपर्याय कैसे सिद्ध होती है? उत्तर :- सारा करणानुयोग ही सुनिश्चित नियमों पर आधारित है, उसमें हमारी बुद्धि के अनुसार कुछ नहीं होता। जैसे - (1) छ: महीने आठ समय में छ: सौ आठ जीव नित्य निगोद से निकलेंगे और इतने ही समय में इतने ही जीव मोक्ष जावेंगे। ___ (2) संसारी जीव निगोद पर्याय से कुछ अधिक दो हजार सागर के लिए ही निकलता है, उसमें भी दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय, मनुष्य, देव, नारकी आदि के भवों की निश्चित संख्या होती है। उदाहरण के लिए मनुष्यों के भवों की संख्या मात्र 48 है। (3) प्रत्येक मिथ्यादृष्टि संसारी जीव को पंच परावर्तनरूप संसार में घूमना पड़ता है। (4) भूत-वर्तमान-भविष्य के तीर्थंकरों की संख्या भी निश्चित ही है। (5) प्रत्येक गुणस्थान, मार्गणास्थान, जीव समान आदि के जीवों की संख्या भी निश्चित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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