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________________ क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर क्रमबद्धपर्याय की सच्ची श्रद्धा करता है, भगवान के ज्ञान में उसके अधिक भव नहीं झलकते । प्रश्न 18. क्रमबद्धपर्याय में एकान्त नियतवाद का निराकरण कीजिए? उत्तर :- पाँच समवायों में मात्र काललब्धि या नियति से ही कार्य की उत्पत्ति मानने से और अन्य समवायों का निषेध करने से मिथ्या एकान्तरूप नियतिवाद का प्रसंग आता है; परन्तु क्रमबद्धपर्याय की श्रद्धा में काल की मुख्यतापूर्वक अन्य समवायों की स्वीकृति भी है, अतः सम्यक् एकान्त होता है, मिथ्या एकान्त नहीं। जैन-दर्शन वस्तु-स्वरूप को अनेकान्त के साथ सम्यक्-एकान्तरूप भी स्वीकार करता है। प्रश्न 19. अकाल-मृत्यु और क्रमबद्धपर्याय में विरोध का निराकरण कीजिए? उत्तर :- विष-भक्षण आदि के निमित्त से आयुकर्म की उदीरणा को अकाल मृत्यु कहते हैं। ये सभी घटनायें केवली भगवान के ज्ञान में पहले से ही ज्ञात हैं, इसलिए पूर्व निश्चित होने से स्वकाल में घटित होती हैं। अतः क्रमबद्धपर्याय के साथ इनका कोई विरोध नहीं आता । अकाल शब्द का अर्थ समय के पहले नहीं, अपितु काल से भिन्न समवायों की मुख्यता से है। 105 प्रश्न 20. अकालनय और क्रमबद्धपर्याय में विरोध का निराकरण कीजिए । उत्तर :- अकाल मृत्यु के समान यहाँ भी अकाल शब्द में काल से भिन्न अन्य समवायों की मुख्यता है। कृत्रिम गर्मी से आम पकाया ऐसा कहने में निमित्त की मुख्यता है, स्वकाल में आम पकने का निषेध नहीं। कृत्रिम गर्मी में भी सभी आम एक साथ नहीं पक जाते, कोई दो दिन में पकता है, कोई चार दिन में, अर्थात् जब जसकी पकने की योग्यता है तभी वह पकता है, आगे-पीछे नहीं। इस प्रकार अकालनय में स्वकाल में कार्य होने का निषेध न होने से क्रमबद्धपर्याय के साथ कोई विरोध नहीं आता । Jain Education International - प्रश्न 21. क्रमबद्धपर्याय की श्रद्धा से स्वच्छन्द होने की आशंका का निराकरण कीजिए ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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