SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ आलोक प्रज्ञा का भंते ! आचार्य भिक्षु ने अपने शिष्यों को किस आधार पर प्रशिक्षित किया ? वत्स ! आचार्य भिक्षु ने विनीत और अविनीत की चौपाई का निर्माण किया। उसके आधार पर उन्होंने अपने सभी शिष्यों को अनुशासन की दीक्षा से दीक्षित कर प्रशिक्षित किया। १८. जयाचार्येण संपुष्टा, सैव पुण्या परम्परा । अद्याऽपि संप्रधार्या सा, गणिना गणसिद्धये ॥ उसी पुण्य परम्परा को जयाचार्य ने संपुष्ट किया । आज भी गण की सुव्यवस्था के लिए आचार्य उसी परम्परा का अनुसरण करते हैं। संघीय और वैयक्तिक प्रवृत्तियां १६. सेवा श्रमस्तथा यात्रा, क्षेत्राणां पर्यवेक्षणम् । लोकानां संग्रहश्चताः, संघवृत्ताः प्रवृत्तयः ।। आर्यवर ! संघ के लिए कौन-कौनसी प्रवृत्तियां आवश्यक भद्र ! सेवा, श्रम, यात्रा, क्षेत्रों की सार-संभाल और नए लोगों का संग्रह-ये सब संघ की प्रवृत्तियां हैं। २०. तपसश्चरणं ध्यानं, स्वाध्यायस्तत्त्वसंग्रहः । निरीक्षा स्वात्मनश्चैता, व्यक्तिवृत्ताः प्रवृत्तयः ।। भन्ते ! है क्तिक प्रवृत्तियां कौन-कौनसी हैं ? भद्र ! तपस्या, ध्यान, स्वाध्याय, तत्त्व का संग्रह और आत्मनिरीक्षण-ये सब व्यक्तिगत प्रवृत्तियां हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003161
Book TitleAlok Pragna ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy