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प्रस्तुति
योगक्षेम वर्ष में सर्वाधिक शक्तिशाली स्वर गूंजता था, वह है प्रज्ञा । प्रज्ञा स्वयं आलोक है। वह दूसरे को आलोकित करती है, इसलिए कहा जाता है प्रज्ञा का आलोक । सूर्य स्वयं आलोकित है, इसलिए वह जगत् को आलोकित करता है। प्रज्ञा जागरण के लिए आवश्यक है-तपस्या, साधना, अनुशासन और निष्ठा । इन सबके समुच्चय का नाम ही था योगक्षेम वर्ष । उस वर्ष में जो कहा, वह कभी-कभी श्लोक बनाकर कहा । प्रस्तुत पुस्तक में वे ही श्लोक संकलित हैं।
मुनि राजेन्द्रजी ने उस संकलन का सानुवाद संपादन किया है । इससे पाठक लाभान्वित हो सकेगा।
युवाचार्य महाप्रज्ञ
२१ जनवरी ६२ जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.)
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